तृणमूल कांग्रेस ने चेतावनी दी थी कि अगर किसी 'योग्य' मतदाता का नाम मतदाता सूची से काटा गया तो वह आंदोलन शुरू कर देगी। राज्य की सत्ताधारी पार्टी ने तो कई राज्यों में पश्चिम बंगाल के लोगों को 'बांग्लादेशी' बताकर उनके साथ बदसलूकी करने के आरोप भी लगाया है।
तृणमूल ने भाजपा पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया है कि सिर्फ संदेह के आधार पर ही किसी को 'बांग्लादेशी' बता दिया जा रहा है। SIR की प्रक्रिया के शुरू होने के बाद से ही इस राज्य में इसी तरह के कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से कदम उठाने के पक्ष में है।
राज्य में SIR शुरू होते ही सीमावर्ती जिलों में गैर-कानूनी घुसपैठिए सीमा पार कर बांग्लादेश जाने की कोशिश करते दिखे। हकीमपुर सीमावर्ती इलाका हो या लालगोला बॉर्डर अलग-अलग जगहों पर बांग्लादेशी घुसपैठियों की तस्वीरें सामने आयी हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि 'बांग्लादेशी' होने के शक में उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जाएगी और न ही उनका नाम मतदाता सूची से काटा जाएगा।
चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के मुताबिक जानकारियों की जांच किए बिना और आयोग के नियमों का पालन किए बिना किसी का नाम मतदाता सूची में शामिल या हटाया नहीं जा सकता। अगर किसी नागरिक की पहचान 'बांग्लादेशी' के तौर पर होती है तो उस मामले में ERO को लिखकर शिकायत करनी होगी।
उस शिकायत के आधार पर देश के गृह मंत्रालय से लेकर फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस या FRRO, संबंधित मतदाता के खिलाफ हर चीज की पूरी जांच करेगा और एक रिपोर्ट देगा। चुनाव आयोग का कहना है कि उस रिपोर्ट के आधार पर ही ERO कानून के मुताबिक संबंधित मतदाता का नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता है।
चुनाव आयोग ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर इस काम में कोई लापरवाही हुई तो ERO को पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी। मात्र 2 दिन बाद ही 16 दिसंबर को मतदाता सूची का मसौदा जारी किया जाएगा। आयोग ने पहले से यह जांच करना चाहता है कि उस सूची में कोई गलती तो नहीं है।