भीष्म महाभारत के सबसे अहम किरदारों में से एक हैं। उनकी जबरदस्त हिम्मत, वीरता और आत्म-बलिदान की कहानी मशहूर हो गई है। महाराज शांतनु और देवी गंगा के बेटे देवव्रत के एक भीषण प्रण की वजह से उन्हें भीष्म की उपाधि मिली थी। इसके साथ ही उन्हें यह वरदान भी प्राप्त था कि वह खुद तय कर सकते थे कि उन्हें कब और कैसे मरना है। इस वरदान की वजह से ही वह कुरुक्षेत्र के मैदान में 58 दिनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे।
शरीर पर अनगिनत चोट, पूरे शरीर में नुकीले तीरों के घुसने की वजह से हो रही पीड़ा, घावों से लगातार खून व पिब का रिसना, कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद सुनसान रणभूमि पर अकेले अपनी मृत्यु शय्या पर वह किसका इंतजार कर रहे थे? आखिर इच्छा मृत्यु का वरदान होने के बावजूद पितामह भीष्म ने भयानक शारीरिक और मानसिक पीड़ा में 58 दिनों तक इंतजार क्यों किया था?
इच्छा मृत्यु का वरदान
जब पिता शांतनु और अपनी मत्स्यकन्या सत्यवती के बीच विवाह को लेकर पैदा हो रही समस्या को दूर करने के लिए भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने का प्रण लिया, तब उनके पिता शांतनु ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। शांतनु के वरदान के मुताबिक दुनिया की कोई भी ताकत भीष्म की मर्जी के खिलाफ उनकी जान नहीं ले सकती थी।
कुरुक्षेत्र का युद्ध और भीष्म की मृत्यु
कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म कौरवों के सेनापति थे। वृद्धावस्था में पहुंच जाने के बावजूद कोई भी योद्धा ऐसा नहीं था जो लड़ाई की रणनीति बनाने के मामले में उनके सामने टिक सके। उनके तीरों से हर दिन अनगिनत पांडव सैनिक मारे जाते थे। आखिर में अर्जुन ने शिखंडी की आड़ लेकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी। अर्जुन के अनगिनत तीरों से भीष्म पितामह बिंध गए। इसके बावजूद उन्होंने बाणों की शय्या पर 58 दिनों का इंतजार किया और मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण त्यागे। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया?
मृत्यु के लिए 58 दिन इंतजार क्यों किया?
साल के छह महीने सूर्य उत्तरायण और छह महीने दक्षिणायन रहता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार अगर उत्तरायण के दौरान किसी की मृत्यु होती है तो वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकता है। दक्षिणायन के दौरान मृत्यु को अशुभ माना जाता है। कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान सूर्य दक्षिणायन थे। भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने के और अपनी मृत्यु के लिए 58 दिनों का इंतजार किया था। मकर संक्रांति पर उत्तरायण शुरू होते ही उन्होंने प्राण त्याग दिए।