नई दिल्ली: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा और कमजोर हो गई है। सोमवार को भारतीय रुपया रिकॉर्ड के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरकर 90.6475 हो गई। इससे पहले 12 दिसंबर को रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर 90.55 था। विशेषज्ञों के अनुसार चालू वर्ष में एशियाई मुद्राओं में भारतीय रुपया सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रहा है।
रुपये की कीमत में गिरावट क्यों? विशेषज्ञों का कहना है कि भारत–अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर लंबे समय से जारी गतिरोध और विदेशी निवेशकों द्वारा लगातार शेयर और बॉन्ड बेचने के दबाव ने रुपये को कमजोर किया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स से मुंबई के एक बैंकर ने कहा कि ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता ने बाजार की धारणा पूरी तरह बिगाड़ दी है। साथ ही विदेशी पूंजी का बाहर जाना लगभग रोज़ हो रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि सोमवार को रुपये की गिरावट और भी गहरी हो सकती थी। हालांकि रिज़र्व बैंक के हालिया कदमों की वजह से बड़ी गिरावट को टाला जा सका।
चालू वर्ष में अब तक भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगभग 5.5 प्रतिशत कमजोर हो चुका है। इसका एक बड़ा कारण अमेरिका द्वारा ऊंची दरों पर शुल्क लगाया जाना है। अमेरिका ने भारत के उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगा दिया है, जिससे भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार में बिक्री घटी है और विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी भी कम हुई है।
आंकड़ों के अनुसार 2025 में अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 1,800 करोड़ डॉलर से अधिक की राशि निकाल ली है। केवल दिसंबर महीने में ही विदेशियों ने 50 करोड़ डॉलर से अधिक के भारतीय बॉन्ड बेच दिए हैं।
इस बीच भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता मार्च से पहले अंतिम रूप लेने की संभावना कम है। इस टिप्पणी ने भी बाजार पर दबाव बढ़ा दिया है। वहीं Bloomberg की रिपोर्ट के अनुसार भारत और यूरोपीय संघ के बीच भी व्यापार समझौता इस साल के भीतर अंतिम रूप लेने की संभावना कम है।
हालांकि इस महीने डॉलर सूचकांक लगभग 1.1 प्रतिशत गिरा है फिर भी रुपया इसका फायदा नहीं उठा सका। फॉरेक्स एडवाइजरी कंपनी IFA Global ने कहा है कि डॉलर के कमजोर रहने के बावजूद मध्यम अवधि में रुपया कमजोर प्रदर्शन कर सकता है। अगले छह हफ्तों में रुपये का दायरा 89.60 से 90.60 के बीच रह सकता है।