नई दिल्ली: कोयला क्षेत्र में एक और बड़ा सुधार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने कोल सेतु विंडो को मंजूरी दे दी है। इस नई विंडो के तहत किसी भी औद्योगिक उपयोग और निर्यात के लिए कोयले का वितरण दीर्घकालिक नीलामी (Auction) के माध्यम से किया जाएगा। यह कदम सरकार की कोयला सेक्टर सुधारों की श्रृंखला का हिस्सा है।
नीलामी के जरिए कोयले का लचीला उपयोग
केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के अनुसार, कोल सेतु विंडो NRS (नॉन-रेगुलेटेड सेक्टर) लिंकेज ऑक्शन पॉलिसी 2016 में जोड़ी गई है। इसके तहत कोई भी घरेलू खरीदार, जिसे कोयले की आवश्यकता है, लिंकेज ऑक्शन में हिस्सा ले सकता है। विशेष रूप से कोकिंग कोयला इस विंडो में शामिल नहीं होगा।
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, नीलामी में ट्रेडर्स को भाग लेने की अनुमति नहीं होगी, जबकि कोयला लिंकेज धारक इसे अपनी ग्रुप कंपनियों के बीच अपनी जरूरत के अनुसार फ्लेक्सिबल तरीके से इस्तेमाल कर सकेंगे।
धुले हुए कोयले की बढ़ती उपलब्धता और निर्यात के अवसर
कोल-सेतु विंडो के तहत वॉशरी ऑपरेटरों को कोयला लिंकेज मिलने से देश में धुले हुए कोयले की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे आयात कम होगा। इसके अलावा धुले हुए कोयले को अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य बिजनेस में आसानी लाना, घरेलू कोयला भंडार का तेज और लचीला इस्तेमाल सुनिश्चित करना और भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में आयात पर निर्भरता कम करना है।
नीति का महत्व और औद्योगिक विकास पर असर
यह नीति न केवल कोयला वितरण के लिए है बल्कि औद्योगिक और ऊर्जा रणनीति में बड़ा बदलाव भी है। स्टील, सीमेंट, एल्यूमिनियम और अन्य उद्योगों को लंबे समय तक स्थिर कोयला आपूर्ति मिलेगी। इससे उद्योगों के लिए सस्ते दरों पर कच्चा माल उपलब्ध होगा और दीर्घकालिक योजना बनाना आसान होगा।
नीति सरकार के बड़े कोयला सेक्टर सुधारों के साथ मेल खाती है जिसमें बिना एंड-यूज़ प्रतिबंध के वाणिज्यिक कोयला खनन भी शामिल है। नीलामी प्रक्रिया पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक होगी जिससे निवेशकों और उद्योगों के लिए भरोसेमंद माहौल तैयार होगा।
कोल-सेतु विंडो सिर्फ कोयला नीलामी की नीति नहीं है बल्कि देश की ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे देश के घरेलू कोयला भंडार का बेहतर उपयोग होगा और भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।