राज्य में SIR की प्रक्रिया चल रही है। इस बीच चुनाव आयोग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लगभग 28 लाख मतदाताओं का नाम मैपिंग में नहीं मिल रहा है। चुनाव आयोग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक राज्य में करीब साढ़े 6 करोड़ से अधिक एन्यूमरेशन फॉर्म के डिजिटाइजेशन का काम पूरा हो चुका है। इसके आधार पर ही मैपिंग का काम किया जा रहा है। बता दें, राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 66 लाख 37 हजार 529 बतायी जाती है।
पर आखिर मैपिंग होता क्या है? कैसे किया जा रहा है मैपिंग?
मैपिंग क्या होता है?
साल 2025 की मतदाता सूची को पश्चिम बंगाल के ही साल 2002 में हुई SIR की सूची से मिलाया जा रहा है। इस प्रक्रिया को ही मैपिंग कही जाती है। इसके जरिए यह देखा जा रहा है कि किन लोगों का नाम पहले वाली SIR की सूची में था। यदि किसी व्यक्ति का नाम पहले वाली SIR की सूची में होता है तो उसके माता-पिता का नाम था अथवा नहीं यह देखा जा रहा है।
कई बार निकट संबंधी के नाम से भी सूची का मिलान किया जा रहा है। अगर ऐसा कोई भी नाम मिलता है तो उसे मैपिंग में आसानी से ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
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चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया
मैपिंग के बारे में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि अभी तक डिजिटाइजेशन का काम चल रहा है, इसलिए मैपिंग न होने वाले मतदाताओं की संख्या बढ़ सकती है या फिर कम भी हो सकता है। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक 28 लाख मतदाताओं का नाम मैपिंग में नहीं मिल रहा है।
क्या अंतिम मतदाता सूची से कट जाएगा नाम?
क्या मैपिंग में नाम नहीं मिला तो अंतिम मतदाता सूची से कट जाएगा नाम? राज्य के मुख्य चुनाव आयोग के ऑफिस के अधिकारियों की तरफ से बताया गया है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। आयोग ने बताया कि जिन मतदाताओं के बारे में जानकारी मिल गयी है, उनको अलग से कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।
लेकिन जिनका पहले का कोई सूत्र नहीं मिल रहा है, उनके दस्तावेजों की जांच चुनाव आयोग करेगा। 9 दिसंबर को मतदाता सूची का मसौदा जारी किया जाएगा। उसी दिन एक सूची भी जारी की जाएगी, जिसमें मृत, फर्जी, स्थानांतरित व अनुपस्थित मतदाताओं का नाम होगा। इसके बाद ERO सुनवाई के लिए बुलाएंगे। इसके बाद ही कागजातों की जांच शुरू होगी।