दार्जिलिंग एक ऐसा शहर जहां हेरिटेज कैफे कोहरे से भरी सुबह की यादों का हिस्सा होता है वहां ग्लेनरीज सिर्फ एक रेस्तरां नहीं बल्कि आइडिया के तौर पर गर्व से खड़ा है। ग्लेनरीज़ के मैनेजर अशोक तमांग के लिए वह आइडिया एक शब्द है - Hope.
News Ei Samay से हुई एक खास बातचीत के दौरान अशोक तमांग ने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, उम्मीद हमेशा रहती है। 'बेहतर दिनों की उम्मीद। आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद।' ऐसे समय में जब ग्लेनरीज के बंद होने की अफवाहें तेजी से फैल रही थीं अशोक तमांग ने बातों के बजाए भरोसा दिलाने को चुना।
उन्होंने साफ किया कि बेकरी और रेस्तरां हमेशा की तरह काम कर रहे हैं। भले ही बार कुछ समय के लिए बंद हो। ऑपरेशनल बातों से अलग उनका पूरा जोर मजबूती से निरंतरता पर रहा : भावनात्मक, सांस्कृतिक और खाने-पीने की।
उम्मीद - जो हर रोज परोसी जाती है
1885 में स्थापित ग्लेनरीज ने कई पीढ़ियों, राजनीतिक बदलावों और लोगों के बदलते जायके को देखा है। अशोक तमांग का मानना है कि आज इसकी प्रासंगिकता लोगों को जुड़ाव महसूस कराने की क्षमता में है। सिर्फ पुरानी यादों में नहीं बल्कि उन्हें भरोसा दिलाने में भी।
उन्होंने कहा कि भले ही यह औपनिवेशिक काल का एक व्यवसाय है लेकिन यहां आने वाले लोग हमें जवां महसूस कराते हैं। हम नई-नई चीजें ट्राई करते रहते हैं। कुछ जोड़ते हैं। अगर कुछ काम नहीं करता तो उसे हटा देते हैं।
तमांग का मानना है कि ग्राहक ही इस संस्था की असली ताकत हैं। सेलिब्रिटी हों या नहीं ग्लेनरीज़ में हर किसी के साथ एक जैसा ही बर्ताव किया जाता है। उन्होंने स्टार कल्चर के विचार को खारिज कर दिया। उनका कहना है कि जो भी यहां आता है वहीं मेरे लिए सेलिब्रिटी है। "कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, दक्षिण भारत से लोग यहां आते हैं। कुछ लोग सिर्फ एक कप कॉफी पीना चाहते हैं, कुछ एक पॉट चाय और कुछ हमारी बेकरी में पकने वाली चीजों का स्वाद चखना।"
उनका मानना है कि ग्राहकों और अपने काम के प्रति रोज की वफादारी ही ग्लेनरीज़ को सुर्खियों या सोशल मीडिया ट्रेंड्स से कहीं ज्यादा टिकाए रखती है।
वह खास डिश जो है इसकी पहचान
जब अशोक तमांग से पूछा गया कि ग्लेनरीज़ की पहचान के तौर पर सिर्फ एक डिश चुनने के लिए कहा जाए तो आप क्या चुनेंगे? इसका बिना झिझके उन्होंने जवाब देते हुए कहा - सिज़लर।
उन्होंने कहा, "हम कॉन्टिनेंटल खाने में विशेषज्ञ हैं और हमारे सिज़लर बहुत ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं।" कई मायनों में यह चुनाव बहुत कुछ कहता है। सिजलर, जो गर्म, शानदार और पेट भरने वाला होता है, ग्लेनरीज़ के अपने अप्रोच को दिखाता है: परंपरा से जुड़ा हुआ! फिर भी आधुनिक पसंद के आधार पर ढलने वाला। वहीं इसकी बेकरी अभी भी आइकॉनिक है। तमांग सिज़लर को इस बात का प्रतीक मानते हैं कि ग्लेनरीज़ का किचन बिना अपनी पहचान खोए समय के साथ कैसे बदल रहा है।
यह डिश भी बिल्कुल उसी तरह से उम्र, जगह और उम्मीदों की परवाह किए बिना लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है जैसे यह जगह करती है।
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ग्लेनरीज़ के बिना दार्जिलिंग अधूरा
दार्जिलिंग में ग्लेनरीज़ को बाकी सब चीजों से क्या अलग बनाती है? यह पूछने पर अशोक तमांग ने वहीं कहा जो अक्सर उनके ग्राहक कहते हैं। उन्होंने कहा, "ग्लेनरीज बिना गए दार्जिलिंग की यात्रा अधूरी है।" तमांग कहते हैं कि उनके लिए सबसे यादगार पल यहां किसी सेलिब्रिटी का आना या फिल्म की शूटिंग नहीं बल्कि लोगों के प्रतिक्रिया होती हैं। कभी-कभी लोग खाना खाने के बाद मुझे गले लगा लेते हैं। वे मुझे धन्यवाद देते हैं। साथ में तस्वीरें लेना चाहते हैं। "इससे मुझे गर्व महसूस होता है। मुझे संतुष्टि मिलती है।"
सिर्फ जिंदा रहने से कहीं ज्यादा
ग्लेनरीज़ को Hope बताते हुए अशोक तमांग सिर्फ बिजनेस के जिंदा रहने की बात नहीं कर रहे हैं। वह भरोसे यानी Hope की बात कर रहे हैं। भरोसे पर बनी संस्थाएं अफवाहों, मुश्किलों और बदलावों के थपेड़ों के बीच ज्यादा समय तक टिक सकती हैं। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा, "उम्मीद हमेशा रहती है।"
दार्जिलिंग में जहां अतीत अक्सर वर्तमान से मुकाबला करता है वहां ग्लेनरीज़ लगातार कुछ अलग कर रहा है: खाने की प्लेट में तसल्ली परोसना, कभी सिज़लर के साथ, कभी एक कप कॉफी के साथ लेकिन हमेशा इस आत्मविश्वास के साथ कि इतिहास आज भी जिंदा है।