सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन एवं भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित हिंदी मेला के चौथे दिन 'भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक हिंदी साहित्य' विषय पर देश भर से आए विद्वानों ने अपनी बातें रखीं। भारतीय ज्ञान परंपरा पर 31वीं हिंदी मेला में चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा, 'सभी दिशाओं से विचारों को आने दो’ यह ऋग्वेद का एक महान कथन है। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन और भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित इस विषय पर राष्ट्रीय संवाद में देश के विभिन्न कोनों से विद्वानों ने भाग लिया।
आरम्भ में वरिष्ठ लेखक डा. शंभुनाथ ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल प्राचीन अतीत तक सीमित नहीं है। इसमें भक्ति आंदोलन, नवजागरण और संपूर्ण आधुनिक हिंदी साहित्य का जो योगदान है उस पर अब विस्तृत चर्चा की जानी चाहिए। विश्वभारती के प्रो.राहुल सिंह ने ज्ञान परंपरा को विरुद्धों के बीच सामंजस्य का इतिहास बताया। दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. गोपेश्वर सिंह ने कन्नड़ कवि बसवण्णा और मराठी कवयित्री जनाबाई के हवाले से ज्ञान परंपरा को लोक अनुभव से जोड़ने पर बल दिया।
आशीष झुनझुनवाला ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की विविधता में एकता है। अध्यक्षीय वक्तव्य में विजयबहादुर सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा कई सांस्कृतिक मोड़ों से गुजरी है और समृद्ध हुई है। उसका केंद्रीय तत्व सत्य है। सम्मान समारोह सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना भारतीय ज्ञान परंपरा का संबंध लोक भाषाओं से रहा है। इसका संबंध जिज्ञासा से है। सम्मानित शिक्षक प्रो.दामोदर मिश्र ने कहा भारत की ज्ञान परंपरा समावेशी है। संचालन करते हुए प्रो.गीता दूबे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की बहुलता का सम्मान किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय संवाद के दूसरे सत्र में राजस्थान की पत्रकार तसमीना ने कहा कि स्त्रियां ज्ञान से हजारों साल तक वंचित की जाती रही हैं। दक्षिण भारत के शंकराचार्य विश्वविद्यालय के प्रो. अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा वस्तुत: परंपरा की टकराहट की देन है। किशन कालजई ने नवजागरण की भूमिका पर प्रकाश डाला। सदानंद शाही ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के नाम पर अज्ञान परंपरा की कई चीजें प्रवेश कर गई हैं।
अध्यक्षीय वक्तव्य में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अवधेश प्रधान ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा हमारी कलाओं में भी यहां तक की अशोक स्तंभ में है और वह उदार है। इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह एवं हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा के प्रथम कुलपति प्रो. दामोदर मिश्र को प्रो. कल्याणमल लोढ़ा - लिली लोढ़ा शिक्षा सम्मान प्रदान किया गया। पत्रकारिता के लिए सबलोग पत्रिका के संपादक किशन कालजयी को युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान एवं निर्मल वर्मा साहित्य सम्मान प्रसिद्ध युवा कथाकार तसनीम खान, जयपुर को मिला।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र का संचालन डॉ गीता दूबे, सम्मान सत्र का डॉ. इतु सिंह, शोध संवाद का डॉ. आदित्य गिरी, राष्ट्रीय संगोष्ठी द्वितीय सत्र का डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने किया। मानपत्र का वाचन मनीषा गुप्ता, रेखा शॉ, सूर्य देव राय और डॉ. श्रद्धांजलि सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन के दायित्व का निर्वाह डॉ. गुलनाज बेगम, प्रो.एन.चंद्रा.राव, प्रो.पूजा गुप्ता एवं राजेश साव ने किया।