लेखक व संवेदनशील पत्रकार ज्योतिर्मय दत्त का निधन रविवार की सुबह हो गया। वे 89 साल के थे। दक्षिण कोलकाता स्थित घर में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। बेटी कंकाबती दत्त ने बताया कि उन्होंने 2-3 दिन से खाना कम कर दिया था, उम्र ढल जाने की वजह से उन्हें कमजोरी भी थी। शनिवार की सुबह कोलकाता में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।
ज्योतर्मय दत्त प्रेसिडेंसी के 1951 बैच के थे। साहित्यकार बुद्धदेव बसु की बेटी मीनाक्षी बसु उनकी सहधर्मी थीं। गद्य, कविता, पत्रकारिता, सम्पादकीय, निबंध संग्रह, लघुकथा—लेखन के हर क्षेत्र में वे अद्वितीय थे। उनके मायावी गद्य में बिजली की चमक भी खेलती थी। 'युगांतर', 'अमृतबाज़ार', 'आजकल', 'द स्टेट्समैन' जैसी समाचारपत्रों में उनकी तीक्ष्ण लेखनी अविस्मरणीय थी। 'द स्टेट्समैन' पत्रिका में वे सहायक संपादक पद पर थे। 'आजकल' में नियमित कॉलम लिखा करते थे।
ज्योतिर्मय दत्त के निधन की खबर सुनकर पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक सुभाशीष मैत्र भी शोक में डूब गए। वे दैनिक आजकल पत्रिका में एक साथ काम कर चुके हैं। कोलकाता में भी उनकी कई यादें बसी हुई हैं। सुभाशीष का कहना है कि 'ज्योतिर्मय जी के कोलकाता पत्रिका आपातकाल के दौरान बैन हो गई थी। वे भी गिरफ्तार हुए थे। साथ में गौरकिशोर घोष भी। जिस दिन यह पत्रिका बैन हुई, मैं गरियाहाट में था। वहां शंकर की किताबों की दुकान थी, बहुत सारी पत्रिकाएँ बिकती थीं। मैं कोलकाता पत्रिका लेकर पृष्ठ पलट रहा था। तीन चार लोग आए और उन किताबों को हाथ से छीन लिया। मैं बेहद परेशान होकर कहा, यह क्या हो रहा है ? उन्होंने कहा, यह बैन हो गया है।'
30-35 मिनट में संपादकीय लिखते थे ज्योतिर्मय। उनके करीबी लोगों का कहना है कि 'जब वह बांग्ला में लिखते थे, तब वे केवल बांग्ला में सोचते थे। अंग्रेजी में लिखते समय भी सोच अंग्रेजी में ही करते थे। नीरद सी चौधुरी बिल्कुल उसी प्रकार के लेखक हैं।' जुगांतर पत्रिका में ज्योतिर्मय दत्त द्वारा संपादित 'कोमल कैक्टस' बहुत लोकप्रिय कॉलम था। उनकी आत्मकथात्मक किताब 'आमार नाइ या होले पारे जावा' दो खंडों में प्रकाशित हुई थी। जिस प्रकार का सुंदर वर्णन, उसी प्रकार की भाषा। मोहित होने योग्य। बांग्ला और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में समान दक्षता थी, भाषा के 'सबह्यसाची' थे ज्योतिरमय।
ज्योतिर्मय की 'दोस्ती' आज भी समाचारपत्र जगत के एक और नक्षत्र खेल पत्रकार चिरंजीव को याद है। उस समय ज्योतिर्मय अंडरग्राउंड में थे। अचानक एक दिन सड़क पर पीछे से गले लगा लिया। उलझे हुए बाल, कपड़ों की हालत भी वही। हँसते हुए चिरंजीव से बोले, 'मुझे लेकिन तुम्हारे साथ अब तक मुलाकात नहीं हुई।'
चिरंजीव को उस दिन की बात भी याद है, जब पेले कोलकाता आए थे। चिरंजीव के अनुसार, 'फुटबॉल स्टार पेले कोलकाता आ रहे हैं। मैं जहाँ काम करता था, संपादक ने मुझे पेले की कवरेज की जिम्मेदारी दी। ज्योतिर्मय दत्त उनकी पत्रिका से इस इवेंट को कवर करेंगे। अचानक सुना कि वह बैंकॉक से पेले के साथ विमान में हैं। मैं तो सुनकर हैरान हो गया। संपादक से कहा, मैं तो पेले आने से पहले ही एक गोल खा गया था।'
अफुरान जीवन शक्ति से भरपूर यह ज्योतिर्मय दत्त ही जरूरी स्थिति में जेल गए, जेल से निकलकर नंगे पांव कोलकाता की राह पर चले। उन्होंने कहा, यही विरोध है। विरोध उन्होंने अपनी कलम से भी किया। अपनी पत्रकारिता के बारे में वे कहते थे, ‘मुक्त बल्लम पत्रकारिता’।
जेल से छूटने के बाद बंगाल की खाड़ी पार की उन्होंने 2200 रुपये में खरीदी एक डिंगी नाव। नाव का नाम था ‘मणिमेखला’। 20 फुट का मास्ट और 30 फिट का पाल। श्रीलंका जाने का मन था। हालांकि अंत में ‘मणिमेखला’ श्रीलंका नहीं पहुँच सकी। फिर भी उस दिन, आज भी, वे अपनी सोच में बहुत दूर चले गए थे...।