वाइचुंग भूटिया के हाथों 2006 में गठित हुई थी फुटबॉल प्लेयर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया। देश के सभी प्रथम श्रेणी के फुटबॉलर इस संस्था के सदस्य हैं। फुटबॉलरों की विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए लंबे समय से काम कर रही है यह संस्था लेकिन उस संस्था को कल्याण चौबे के नेतृत्व वाला ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ)। स्वीकृति नहीं दे रहा।
कुछ महीने पहले जब ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के संशोधित संविधान को स्वीकृति दी सुप्रीम कोर्ट ने, उस संविधान में स्पष्ट कहा गया था कि प्लेयर्स एसोसिएशन को महत्व देना होगा। एसोसिएशन के 15 सदस्यों (5 महिला) का मताधिकार होगा एआईएफएफ के चुनाव में। भाइचुंग ने दबाव डालना शुरू किया था कि उनकी संस्था को ही सरकारी प्लेयर्स एसोसिएशन का दर्जा दिया जाए लेकिन शुक्रवार को एआईएफएफ ने एक नोटिस जारी किया है। उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नेशनल प्लेयर्स एसोसिएशन (एनपीए) के अलावा नेशनल कोचेस एसोसिएशन और नेशनल रेफरीज एसोसिएशन बनाएगा एआईएफएफ। सदस्य बनने के लिए 11 जनवरी तक निर्धारित फॉर्म में आवेदन करना होगा एआईएफएफ को।
इस संस्था का सदस्य बनने के लिए जो योग्यताएं लगेंगी, उसकी भी सूची दी गई है। इन संस्थाओं में तीन पदाधिकारी होंगे। चेयरपर्सन, ट्रेजरर और सचिव। इन पदों के लिए उम्मीदवार बनने के नियम भी प्रकाशित किए हैं एआईएफएफ ने।
इधर, चालू सीजन का आईएसएल शुरू करने के लिए क्लबों ने पहल की है। दीर्घकालिक कंसोर्टियम बनाकर लीग शुरू करने के मामले में वे काफी आगे बढ़े हैं लेकिन वे किसी भी स्थिति में एआईएफएफ प्रेसिडेंट कल्याण चौबे पर भरोसा नहीं कर रहे। उनका भरोसा केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया पर है। क्लबों के सीईओ की उम्मीद है कि खेल मंत्री ही उनकी लीग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अगले सप्ताह तक अनुमति दिलवा देंगे और उनके कंसोर्टियम मॉडल को स्वीकार करने के लिए मजबूर होगा फेडरेशन, 20 दिसंबर को एआईएफएफ की वार्षिक आम सभा में।