नई दिल्ली। दो दिन पहले वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक ही मंच पर नज़र आए। पाटलिपुत्र के चुनावी रण में बदलाव बनाम वापसी की लड़ाई लड़ने के लिए नीतीश कुमार ने भाजपा से हाथ भी मिला चुके हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा अक्टूबर में होगी। इस बीच कुछ ऐसी बातें सामने आ रही हैं जिससे ये कयास लगाये जा रहे हैं कि चुनाव से पहले ही सत्तारूढ़ गठबंधन का आपसी तालमेल बिगड़ रहा है?
सूत्रों के अनुसार बिहार चुनाव से पहले आयोजित जनसभाओं में एक तरफ मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ के मुद्दे को विपक्षी खेमे पर निशाना साधने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं जदयू का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है। इसीलिए वे इस मुद्दे से किनारा किये हुए हैं। बिहार में हर जनसभा में मोदी और शाह कह रहे हैं कि किसी भी बांग्लादेशी घुसपैठिए को किसी भी हालत में बिहार में नहीं रहने दिया जाएगा। भाजपा के अन्य शीर्ष नेता भी पार्टी के इन दोनों शीर्ष नेताओं का अनुसरण कर रहे हैं।
यहीं पर मामला पेचीदा होता जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि खुद नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के शीर्ष नेताओं के एक बड़े वर्ग को लगता है कि बिहार की मतदाता सूची के व्यापक पुनरीक्षण (एसआईआऱ) के मुद्दे ने मतदाताओं के मन में पहले ही काफ़ी गुस्सा पैदा कर रखा है। इस जख्म पर मरहम लगाने के लिए अगर कांग्रेस-राजद काल के भ्रष्टाचार और लालू प्रसाद यादव के शासनकाल के 'जंगल राज' के उदाहरण बिहार की जनता के सामने पेश किए जाएं तो बिहार चुनाव में अच्छे नतीजे मिलेंगे। इसमें डबल इंजन सरकार के विकास कार्यक्रमों और केंद्र सरकार द्वारा की गई कल्याणकारी योजनाओं का ब्यौरा भी जोड़ा जा सकता है। नीतीश कुमार की अपनी पार्टी के सूत्रों के अनुसार, मोदी-शाह जिस तरह से घुसपैठ के मुद्दे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं वह उन्हें पसंद नहीं आ रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार नीतीश की नाराजगी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के प्रतिनिधियों तक पहुंच गई है।
कांग्रेस सूत्रों का यह भी दावा है कि नीतीश ने अपने राज्य में घुसपैठ के मुद्दे पर प्रचार अभियान में जिस तरह पार्टी स्तर पर अपनी नाराज़गी जताई है उसका एक आधार है। पिछले दो दशकों में बिहार में कोई विकास नहीं हुआ है। स्वास्थ्य सेवाओं का समुचित ढांचा नहीं है। मज़दूरों का दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए जाना, बिगड़ती क़ानून-व्यवस्था, महिलाओं पर अत्याचार और बड़े उद्योगों का अभाव एनडीए खेमे को परेशान कर रहा है। बिहार प्रदेश कांग्रेस नेता असित नाथ तिवारी का आरोप है कि भाजपा लोगों का ध्यान भटकाने के लिए लगातार बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे का प्रचार कर रही है।
उन्होंने दावा किया कि संसदीय आंकड़े बताते हैं कि 2005 से 2014 के बीच 77,156 बांग्लादेशियों को भारत से उनके देश वापस भेजा गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में 2015 से 2017 तक 833 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया। केंद्र सरकार 2018 से 2024 तक इस देश में रह रहे कितने बांग्लादेशियों को उनके देश वापस भेजा गया, इसका कोई आंकड़ा पेश नहीं कर पाई है। तिवारी ने आगे कहा कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अच्छी तरह जानता है कि इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा और एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती है। उनकी स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए वे राज्य के अविकसित विकास को छिपाने के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ की के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। राजद नेता सुबोध कुमार मेहता ने असित नाथ तिवारी के बयान का व्यापक समर्थन किया है।