क्या गिरफ्तार कोई नाबालिग अग्रिम जमानत मांग सकता है? लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) की एक पीठ ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि नाबालिग आरोपी भी दंड प्रक्रिया संहिता (और नई दंड प्रक्रिया संहिता - BNS) की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
वकीलों का दावा है कि देश में यह पहली बार है कि किसी हाई कोर्ट ने नाबालिग के अग्रिम जमानत मांगने के अधिकार को मान्यता दी है। न्यायमूर्ति जॉय सेनगुप्ता, तीर्थंकर घोष और विभास पटनायक की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति सेनगुप्ता और न्यायमूर्ति घोष ने अग्रिम जमानत के पक्ष में अपनी राय दी। न्यायमूर्ति पटनायक ने इससे असहमति जताई। फैसले में कहा गया था कि भारतीय दंड संहिता के अनुसार, 'कोई भी व्यक्ति' अग्रिम जमानत मांग सकता है।
एक नाबालिग आरोपी ने इसी आधार पर अग्रीम जमानत की अर्जी दायर की थी। हालांकि राज्य सरकार ने शुरुआत में इस अर्जी का विरोध यह कहते हुए किया था कि किशोर न्याय अधिनियम में अग्रिम जमानत का कोई जिक्र नहीं है। बाद में पीठ ने केंद्र सरकार की राय लेने का आदेश दिया। केंद्र सरकार की राय पेश होने के बाद, राज्य ने भी अपनी स्थिति में संशोधन करते हुए एक नया तर्क पेश किया।
लंबी सुनवाई के बाद दोनों न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि जब कानून में 'किसी भी व्यक्ति' शब्द का प्रयोग होता है, तो किसी नाबालिग को इससे बाहर नहीं रखा जा सकता। इसके साथ ही न्यायाधीशों ने संवैधानिक न्याय का तर्क भी दिया। उनका कहना है कि यदि किसी विशिष्ट कानून में कोई निषेध नहीं है, तो नाबालिग के आवेदन को अस्वीकार करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि किसी को भी उम्र के आधार पर उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि कानून में स्पष्ट रूप से निषेध न हो।