पुराने हिंदी फिल्मों में कुम्भ मेले का इस्तेमाल भाइयों या बहनों के बिछड़ने और फिर सालों बाद मिलने का कहानी दिखाने का एक लोकप्रिय विषय था। उदाहरण के तौर पर फिल्म तकदीर(1943), मेला(1971), धर्मात्मा(1975) और भी फिल्में शामिल है। खैर जो भी हो, फिल्मों में बिछड़े हुए भाइयों को मिलने-मिलाने का कोई न कोई रास्ता भी दिखाया जाता था। अभी के दौर में बिछड़ों को मिलवाने का काम SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कर रहा है।
फिलहाल एक ऐसी एक घटना सामने आयी है जो 38 साल पहले मेले में बिछड़े भाइयों को मिलवा दिया। घटना पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक थाना क्षेत्र के नवोदा-यदुपुर गांव पंचायत के नयाग्राम की है। रविवार की सुबह 38 साल बाद घर लौटे जाहिद। जाहिद अब विवाहित है। पत्नी को साथ लेकर लौटे। घर लौटकर देखा कि उसकी ही तस्वीर पर फूलों के हार टंगे हुए है। परिचय दिया तो सारा सच सामने आया। जाहिद को अब तक लोग मृत समझ रहे थे। कारण, घर के लोग रीति-रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार तक कर दिया था।
जाहिद के वापस लौट आने से न सिर्फ परिवार बल्कि गांव वाले काफी खुश हैं लेकिन जाहिद को 38 साल बाद ही क्यों परिवार वालों की याद आयी ? क्योंकि जाहिद का कहना है कि परिवार वालों की याद सताने लगी थी, इसलिए उसे वापस आना पड़ा। जाहिद क्या सच बोल रहे हैं-शायद ही गांव वालों को इस सवाल का जवाब मिला हो लेकिन यह समझना जरूरी है कि केंद्र सरकार की SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर कई भूले-भटके लोग वापस अपने घर लौटने लगे हैं।
तो क्या यह अभियान की देन तो नहीं ? हाल ही में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के जोगीधोरा गांव के निवासी उदय सिंह रावत इसलिए 40 साल बाद अपने घर लौटे क्योंकि उनके पास कोई दस्तावेज वहां नहीं था। दस्तावेजों की वजह से 40 साल बाद उदय सिंह घर लौटे। बिछड़े लोगों के मिलने का सिलसिला जारी रहने के दौरान ही ऐसी ही खबर बंगाल के मालदा जिले से आ गई। भारत सरकार के इस अभियान को लेकर और न जाने कितने बिछड़े घर लौटेंगे, यह वक्त बताएगा।