नागरिकता देने के वादे से ही मतुआ समुदाय को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी। सीएए कानून पास होने के बाद भी अब तक गिनती के कुछ मतुआओं को ही नागरिकता का प्रमाणपत्र मिला है। इस बार मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन की शुरुआत की घोषणा होते ही तृणमूल और भाजपा दोनों दलों में मतुआओं के एक बड़े हिस्से के नाम कटने की आशंका पैदा हो गई है। मतुआ समुदाय के लोग भी गहरी दुविधा में पड़ गए हैं।
बंगाल में आखिरी बार एसईआर 2002 में हुआ था। 2003 में अपलोड हुई उस सूची में अगर किसी मतदाता का नाम नहीं है तो उसे जरूरी दस्तावेज दिखाने होंगे। इन्हीं दस्तावेजों के कारण इस बार मतुआ मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा मुश्किल में पड़ने वाला है। इसे लेकर आम मतुआओं के साथ-साथ तृणमूल और भाजपा के मतुआ नेतृत्व में भी चिंता बढ़ी है। दो दिन पहले ही बनगांव के सांसद केंद्रीय पोत परिवहन राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर ने कहा था कि शरणार्थी मतुआओं में से किसी का नाम कट जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। सीएए के जरिए उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। तृणमूल की राज्यसभा सांसद ममताबाला ठाकुर की भी यही आशंका है। एसईआर लागू होने पर मतुआओं को क्या करना चाहिए, यह बताने के लिए आगामी 2 नवंबर को ठाकुरबाड़ी में उन्होंने बैठक का फैसला लिया है।
मतुआओं के आराध्य देव हरिचांद और गुरुचांद ठाकुर हैं। 1832-33 में समाज में ब्राह्मणों के प्रबल दबदबे के खिलाफ खड़े होकर हरिचांद ने उपेक्षित नमशूद्रों के साथ सामाजिक आंदोलन खड़ा किया था। हरिचांद की मृत्यु के बाद उनके बेटे गुरुचांद ठाकुर ने वह आंदोलन जारी रखा। गुरुचांद के पोते प्रमथरंजन ठाकुर की पत्नी मतुआओं की बोड़ो मां बीणापाणी ठाकुर थीं। 1948 में प्रमथरंजन अपनी पत्नी को लेकर भारत आ गए थे। उनके साथ ही उस पार बंगाल से इस पार लगभग पचास हजार मतुआ आए थे। पति-पत्नी मिलकर उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव स्थित गाईघाटा के ठाकुरनगर में मतुआओं के साथ ठाकुर लैंड एंड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाया। तभी से इस बस्ती का नाम ठाकुरनगर हो गया। इतने सालों में वहां और आसपास के इलाकों में मतुआओं की आबादी बढ़ी है। मतदाता, आधार कार्ड लेकर वे भारत के 'नागरिक' भी बन गए हैं लेकिन इस बार एसईआर शुरू होने से वही मुसीबत में पड़ सकते हैं।
बनगांव लोकसभा के अधीन सात विधानसभा सीटें हैं। बनगांव और आसपास के विस्तृत इलाके में मतुआओं की संख्या बढ़ने से पिछले कुछ दशकों में वे ही चुनाव में जीत-हार के निर्धारक बन गए हैं। मतुआ लगभग चार दशक से भारत आकर बसना शुरू कर चुके हैं। इनमें से कई लोगों ने 2002 के बाद मतदाता सूची में नाम दर्ज कराया है। 2002 के बाद से 2025 के बीच कई मतुआ बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार के शिकार होकर भारत आए हैं। उनमें से किसी के पास भी जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। इसलिए एसईआर शुरू होने पर 2002 की मतदाता सूची में वे कोई नहीं होंगे।
इसी को लेकर दो दिन पहले ठाकुरबाड़ी में गोसाइयों के साथ शांतनु ठाकुर ने धार्मिक सम्मेलन किया है। एसईआर शुरू होने से मतुआओं का एक बड़ा हिस्सा बेनागरिक हो सकता है, यह समझकर ही उन्होंने कहा कि मतुआ शरणार्थियों में से किसी का नाम एसईआर में कट जाए तो सीएए के जरिए उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी लेकिन इससे आशंका दूर नहीं हुई है। उल्टे अब तक के नागरिक अधिकार खोकर मतुआओं में विदेशी ठप्पा लगने का डर है। तृणमूल सांसद ममताबाला ने दिल्ली से फोन पर बताया कि पहले मतदाता सूची से मतुआओं के नाम कट जाएंगे। मतदाता कार्ड नहीं होगा तो वे सीएए में भी नहीं आएंगे। 2002 से पहले जो आए हैं उनका कुछ हिस्सा शायद बच जाए लेकिन 2002 के बाद जो इस देश में आए हैं उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। उनकी समस्या ज्यादा होगी।