सारदा मामले में राज्य पुलिस के डीजी राजीव कुमार की अग्रिम जमानत को खारिज करने की मांग करते हुए CBI ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया था। शुक्रवार को सीबीआई के उस आवेदन को मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने खारिज कर दिया। जानकारों का मानना है की सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने आईपीएस अधिकारी को निश्चित रूप से राहत मिली है।
हालांकि उनके खिलाफ दर्ज किया हुआ अदालत की अवमानना के आरोपों से संबंधित मामले की सुनाई 8 सप्ताह बाद हो सकती है।
सारदा चिटफंड की घटना में राज्य सरकार की एक विशेष जांच कमेटी (SIT) का गठन किया गया था। उसी कमेटी का सदस्य थे, विधाननगर के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार। इसके बाद वर्ष 2014 में इस मामले की जांच सीबीआई ने अपने कंधों पर उठा ली थी। जांच करते हुए केंद्रीय संस्थान का आरोप लगाया था कि प्रभावशाली आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा सीबीआई ने राजीव कुमार के खिलाफ और भी कई शिकायतें दर्ज करवायी थी। हालांकि इन सभी आरोपों को राजीव कुमार ने अस्वीकार किया था।
इसके बाद ही उन्हें हिरासत में लेने की मांग करते हुए सीबीआई ने आगे की कार्रवाई करना शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि उस समय कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) के तत्कालीन न्यायाधीश शहिदुल्लाह मुंसी और न्यायाधीश शुभाशिष दासगुप्ता की डिवीजन बेंच में राजीव कुमार को अग्रीम जमानत दे दी थी। इस फैसले को चुनौती देते हुए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके अलावा सीबीआई ने राजीव कुमार के खिलाफ अदालत की अवमानना करने का भी एक आरोप लगाया था।
लगभग 6 सालों बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वीआर गवई और न्यायाधीश के. विनोद चंद्रनेर की बेंच में इस मामले की सुनवाई 13 अक्तूबर को हुई। पिछली सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में सीबीआई की भूमिका को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया था।
साथ ही यह सवाल भी उठाया गया कि पिछले 6 सालों के दौरान सीबीआई ने राजीव कुमार से कोई पूछताछ क्यों नहीं की? हालांकि राजीव कुमार के वकील विश्वजीत देव ने दावा किया था कि जानबुझकर आईपीएस अधिकारी की बेइज्जती की जा रही है। राज्य के वकील कल्याण बंद्योपाध्याय ने अदालत के बाहर इस मामले को लेकर बताया, 'यह सिर्फ राजनीतिक आरोप है। इस मामले को राजनीतिक मोड़ देने की कोशिश की जा रही है।'