समाचार एई समय : क्या राज्य में वित्तीय आपातकाल चल रहा है? यह सवाल उठाया है कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने। बार-बार तकाजे के बाद भी न्यायपालिका के विभिन्न क्षेत्रों के खर्च पिछले लंबे समय से बकाया पड़ा हुआ है। इस बात से नाराज हाईकोर्ट ने सोमवार को रिजर्व बैंक में राज्य के कंसोलिडेटेड फंड को फ्रीज करने की चेतावनी भी दी।
भारी बकाया राशि में पिछले तीन वर्षों में फोन और इंटरनेट सेवा के लिए बीएसएनएल के 5 करोड़ 66 लाख रुपये राज्य ने नहीं चुकाए हैं, यह जानकर न्यायमूर्ति देवांशु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीदी काफी नाराज हुए। बताया जाता है कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच बार-बार राज्य के वकीलों से रिजर्व बैंक में राज्य के खाता संख्या की जानकारी मांगती है ताकि उसी दिन खाता फ्रीज करने का आदेश दिया जा सके।
राज्य के वकीलों ने दो दिन का समय मांगा है। बताया जाता है कि अंततः फोन-इंटरनेट बिल के 2.94 करोड़ रुपये उसी दिन रिलीज करने की बात कही गयी और कुछ दिनों के भीतर बाकी बकाया के लिए सकारात्मक कदम उठाने की बात कहकर वकीलों ने फिलहाल खाता फ्रीज के संकट से राज्य को बचा लिया है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि जो हुआ है वह बिल्कुल अनपेक्षित है। उन्होंने अपनी असहायता जताई।
अदालत का कहना है कि न्यायपालिका के बकाया संबंधी सुनवाई में हाईकोर्ट के तलब पर राज्य के मुख्य सचिव दो-दो बार वर्चुअली हाजिर हुए हैं। उसके बाद भी राज्य ने कैसे कम से कम 36 परियोजनाओं में 90 करोड़ रुपये की मंजूरी रोक रखी है? न्यायमूर्ति बसाक का कहना है कि बीएसएनएल का तीन साल का बिल बकाया है! इंटरनेट सेवा बंद हो जाए तो क्या होगा? राज्य की भूमिका से हम हैरान हैं।
राज्य के वकीलों के बार-बार समय मांगने और गिड़गिड़ाने पर अदालत ने इस मामले की सुनवाई 10 नवंबर को फिर से होने की बात कही। उससे पहले 29 अक्टूबर और 6 नवंबर को राज्य के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के साथ बैठक करनी होगी। इस बैठक में वित्त सचिव को भी उपस्थित होना होगा। गौरतलब है कि पहले के आदेश के आधार पर अक्तूबर में दो दिन ऐसी बैठक हुई थी। लेकिन वास्तव में बकाया चुकाने के मामले में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखने से अदालत ने तीव्र नाराजगी जताई।
अदालत का सवाल है कि हाईकोर्ट के काम के लिए धन आवंटित करना क्या राज्य के प्रशासनिक कार्य में नहीं आता? तीन साल से बीएसएनएल का बिल क्यों नहीं चुकाया गया? न्यायमूर्ति ने हताश होकर अपनी टिप्पणी में कहा कि हाईकोर्ट की यदि ऐसी स्थिति है तो जिला अदालत में क्या हो रहा है, इसका अनुमान बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है! अदालत ने बताया कि अगली सुनवाई से पहले तमाम बकाया चुकाने के बारे में राज्य को कदम उठाना ही होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हाईकोर्ट कानूनी रास्ता अपनाएगा। हाईकोर्ट का कहना है कि न्यायपालिका का खर्च चुकाना राज्य की जिम्मेदारी है। राज्य उस जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।