एई समय। इस बार अंतराल ठीक 12 दिन का है। 22 सितंबर की रात के बाद शनिवार 4 अक्टूबर की रात को कोलकाता में फिर से भारी बारिश हुई। इस बार भी मौसम विज्ञानी कुछ हफ्ते पहले बादल फटने की घटना के लिए जिम्मेदार क्यूम्यूलोनिम्बस बादल को ही 'खलनायक' मान रहे हैं। उनका मानना है कि शनिवार रात तक कोलकाता के ऊपर बादलों की एक परत जम गई थी जो कम से कम 12 किलोमीटर तक ऊंची हो गई थी।
क्यूम्यूलोनिम्बस बादल मानसून में आसमान में तबाही का संकेत होते हैं। ये बादल गर्म हवा से बनते हैं। इसी बादल की वजह से शहर में 'भारी बारिश' हुई। सिर्फ बारिश ही नहीं कोलकाता को नींद से जगाने के लिए आधी रात को ताबड़तोड़ वज्रपात हुए। शनिवार रात डेढ़ बजे से तीन बजे तक सिर्फ डेढ़ घंटे में कोलकाता में 200 से ज्यादा बार वज्रपात दर्ज की गईं। पूरे दक्षिण बंगाल में इसी डेढ़ घंटे में 1,000 से ज्यादा वज्रपात होने की सूचना मिली है।
देश के पश्चिमी हिस्से से दक्षिण-पश्चिम मानसून विदा लेने लगा है। हालांकि माना जा रहा है कि बंगाल से इस मानसूनी हवा की विदाई 12-13 अक्टूबर से पहले नहीं होगी। अपने अंतिम दिनों में भी दक्षिण-पश्चिम मानसून अपनी उपस्थिति का अच्छा एहसास करा रहा है।
अगर किसी क्षेत्र में 24 घंटे में कम से कम 65 मिलीमीटर बारिश होती है तो उसे मौसम विज्ञान की भाषा में 'भारी बारिश' कहा जाता है। इस हिसाब से शनिवार की रात कोलकाता में इस मौसम की छठी भारी बारिश थी। कोलकाता में लगभग 71 मिलीमीटर बारिश हुई। अलीपुर मौसम कार्यालय के अनुसार इस साल महानगर में जुलाई में चार बार, सितंबर में एक बार और अक्टूबर में अब तक एक बार भारी बारिश हो चुकी है। इनमें 22 सितंबर की रात को बादल फटने या क्लाउड बर्स्ट से बारिश हुई थी।
मौसम विज्ञानी रवींद्र गोयनका ने शनिवार रात कोलकाता में हुई भारी बारिश के बारे में बताया कि उत्तर बंगाल के ऊपर आसमान में कम दबाव के बादल पहले से ही बने हुए थे। इसके प्रभाव से देश की भूमि में भारी मात्रा में जलवाष्प प्रवेश कर रही है। वह जलवाष्प दक्षिण बंगाल की ओर बढ़ गई है। मुख्य रूप से उसी की वजह से दक्षिण बंगाल में विभिन्न स्थानों पर क्यूम्यूलोनिम्बस बादल बन रहे हैं। शनिवार रात कोलकाता के ऊपर भी ऐसा ही एक बादल समूह बना था।
इतना ज्यादा वज्रपात होने के क्या कारण है? रवींद्र गोयनका कहते हैं कि वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में कम पवन-प्रक्षेपण या हवा की गति के कारण क्यूम्यूलोनिम्बस परत काफी समय तक एक जैसी बनी रही। इसलिए एक विशिष्ट क्षेत्र में लगातार बिजली गिरती रही। संयोग से बादलों की वह परत कोलकाता के ऊपर जमा हो रही थी।
क्या मानसून खत्म होने से पहले ऐसी और घटनाएं होने की संभावना है? मौसम विज्ञानी इस बारे में निश्चित नहीं हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि उपग्रह द्वारा भेजी गई तस्वीरों से पता चलता है कि बंगाल और पूर्वोत्तर भारत अभी बादलों की मोटी परत से ढके हुए हैं।
असम के ऊपर एक चक्रवात के बने होने के कारण समुद्र से जलवाष्प प्रवेश कर रही है। इसलिए अगले कुछ दिनों में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। हालांकि भारी बारिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।