खांसी के लिए दिए जाने वाले कफ सिरप (Cough Syrup) में मौजूद खतरनाक सामग्री की वजह से मध्य प्रदेश और राजस्थआन में बच्चों की मौत का मामला सामने आने के बाद ही राज्य प्रशासन भी सतर्क हो गयी है। पश्चिम बंगाल में कफ सिरप की वजह से किसी को कोई नुकसान न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य भवन ने निर्देशिका जारी की है।
इस निर्देशिका में कफ सिरप का उत्पादन करने वाली कंपनी से लेकर खुदरा विक्रेता तक, हर किसी की जिम्मेदारियों को निर्धारित किया गया है। बताया जाता है कि राज्य भर के बाजारों में बिकने वाले करीब डेढ़ सौ प्रकार के कफ सिरप का नमूना जांच के लिए लैब में भेजा गया है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में कई बच्चों की मौत के मामले में विशेषज्ञों ने कफ सिरप को ही जिम्मेदार ठहराया है। इन दोनों राज्यों में बच्चों की मृत्यु की घटनाएं सामने आने के बाद ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेताया था। अब उसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए राज्य के स्वास्थ्य भवन ने भी सभी मेडिकल कॉलेज, सभी जिलों के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी और सरकारी अस्पतालों में निर्देशिका भेजी है।
इस निर्देशिका में अस्पताल के स्टॉक में मौजूद सभी कफ सिरप की सेल्फ लाइफ (खराब होने की तारीख) और गुणवत्ता की जांच करने का निर्देश दिया गया है। कफ सिरप उत्पादक कंपनियों के लिए भी स्वास्थ्य भवन ने कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें कहा गया है कि कफ सिरप बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्रोपिलिन ग्लाकोल, ग्लिसरीन, सरबिटल (आईपी) जैसे कच्ची सामग्रियों को सिर्फ सरकार द्वारा स्वीकृत सप्लायर से ही खरीदना होगा। खास तौर पर इथिलिन ग्लाइकोल और डाइथिलिन ग्लाइकोल जैसी सामग्रियां।
कई बार कच्ची सामग्रियों के साथ ये सभी रसायन मिक्स हो जाते हैं। इसलिए हर एक कच्ची सामग्री की अच्छी तरह से जांच करना अनिवार्य है। सभी उत्पाद और विक्रेताओं को निर्देश दिया गया है कि एसएमआईएस सिस्टम में दवा को अपलोड करने से पहले स्वीकृत एनएबीएल लैब से स्टैट्यूटरी सैम्पलिंग रिपोर्ट लेकर जमा करना अनिवार्य है। स्वास्थ्य भवन ने चेतावनी दी है कि अगर इसमें किसी भी तरह की कोताही बरती गयी तो कानूनी प्रक्रिया में फंसने पर जवाबदेही उत्पादक और विक्रेता की होगी।
अभी तक बाजारों में दवाईयों का जो स्टॉक मौजूद है, उनकी सेल्फ लाइफ और सुरक्षा संबंधित जांच कर लेनी होगी। स्वास्थ्य भवन के एक अधिकारी का कहना है कि बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाईयों की गुणवत्ता की जांच में किसी तरह की लापरवाही बर्दास्त नहीं की जाएगी। इसलिए सभी को सतर्क किया जा रहा है।