कच्चे जूट की कीमत इस मौसम में क्विंटल के हिसाब से 9,500-9,800 रुपये तक पहुँच गई
कच्चे जूट की असामान्य मूल्य वृद्धि, आपूर्ति की कमी और केंद्रीय परियोजना में चट बोरियों की कीमत निर्धारित करने के फैसले, इन तीनों दबाव के कारण राज्य के जूट उद्योग में अभूतपूर्व अस्थिरता उत्पन्न हुई है। उत्पादन लागत संभालने में असमर्थ होकर पहले ही कई छोटे और मध्यम जूट मिलें बंद होने के कगार पर हैं। कई जूट मिलों में ताले लटक गए हैं।
राज्य के चट मिल मालिकों का कहना है कि इसका सीधा आर्थिक दबाव श्रमिकों पर पड़ रहा है। इस स्थिति में पश्चिम बंगाल के श्रम मंत्री मलय घटक से जूट मिल मालिकों के संगठन इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (इज्मा) ने पत्र भेज कर हस्तक्षेप की मांग की है। संगठन ने मंत्री को पत्र भेजकर हस्तक्षेप की मांग की है।
संगठन के पूर्व अध्यक्ष संजय काजरिया ने बताया कि संकट के कारण राज्य की दो मिलें पहले ही उत्पादन बंद करने के लिए मजबूर हो गई हैं। उनका आरोप है कि कच्चे जूट की अस्थिर कीमत और उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है, जबकि केंद्रीय परियोजना में आपूर्ति योग्य 580 ग्राम बी-ट्वील बस्तर की कीमत स्थिर करने के कारण बड़ी से छोटी सभी मिलें भारी नुकसान के सामना हैं।
इज्मा का आरोप है कि जूट कमिश्नर का कार्यालय एक तरफा रूप से जूट बैग की कीमत सितंबर 2025 के स्तर पर तय कर दिया है, जो केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा अनुमोदित नीति के खिलाफ है और यही वर्तमान गतिरोध का एक मुख्य कारण है।
इस बीच कच्चे पाट की कीमत इस मौसम में क्विंटल के हिसाब से 9,500-9,800 रुपये तक पहुंच गई है जो कि यह कीमत चौंकाने वाला है। इसके अलावा राज्य में पाट की खेती कम होने के कारण कच्चे पाट की आपूर्ति भी कम है। साथ ही भारत-बांग्लादेश कूटनीतिक संबंधों में तनाव के कारण केंद्र ने बांग्लादेश से जमीन मार्ग के जरिए कच्चे पाट के आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
IJMA की 'सेंसिटिविटी एनालिसिस' कहती है कि जहां A-ग्रेड मिल भी लाभकारी उत्पादन नहीं कर पा रही है वहां B-ग्रेड और C-ग्रेड मिलों की स्थिति और भी चिंताजनक है। इसका सबसे पहला असर मजदूरों पर पड़ रहा है। मिल मालिकों ने 20 नवंबर को नोटिस दे कर कहा है कि वर्तमान नुकसान की स्थिति में मजदूरों को अतिरिक्त महंगाई भत्ता देना संभव नहीं है।
IJMA का कहना है कि बाजार की स्थिति के अनुसार जूट की बोरी का मूल्य निर्धारित करने की नीति तुरंत फिर से लागू की जाए और कच्चे जूट का आयात पर प्रतिबंध हटा लिया जाए। जूट कमिश्नर ऑफिस के एक अधिकारी का कहना है कि जूट की बोरी का जो मूल्य निर्धारित किया गया है, वह सटीक कानून और फॉर्मूला के अनुसार किया गया है।