कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) आवेदन की प्राप्ति रसीद (Receiving) को SIR दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने की मांग की गई थी। मिली जानकारी के अनुसार एक स्वयंसेवी संगठन ने इस जनहित याचिका को कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High court) में दायर किया था। इस जनहित याचिका में पूछा गया था कि CAA के लिए आवेदन करने वाले लोग क्या मतदान संशोधन प्रक्रिया में अपना नाम दर्ज करा पाएंगे?
हाई कोर्ट इस आवेदन पर कोई भी फैसला नहीं सुनाना चाहती है। हालांकि इस मामले में केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया है कि CAA के तहत पश्चिम बंगाल से नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों के आवेदनों पर 10 दिनों के भीतर विचार किया जाएगा। यह आश्वासन स्वाभाविक रूप से CAA आवेदकों के लिए एक बड़ी राहत है।
नागरिकता कानून के तहत आवेदन की रसीद को SIR का दस्तावेज मानने के सवाल पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति चैताली चटर्जी की खंडपीठ ने कहा कि पहले इस बात पर पहले विचार किया जाएगा कि कोई नागरिक बनेगा या नहीं। ऐसे में हर व्यक्ति के आवेदन की पुष्टि का संदर्भ अलग-अलग होता है। इसलिए सबसे लिए एक समान आदेश सुनाना संभव नहीं है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
मिली जानकारी के अनुसार देश भर में कम से कम 50 हजार लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया है। लेकिन एक भी आवेदन का निपटारा नहीं हुआ है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कानून के मुताबिक आवेदनों का निपटारा अधिकतम 90 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। इसके बाद केंद्र ने अदालत को सूचित किया कि गृह मंत्रालय आवेदनों पर CAA के नियमानुसार विचार करेगा और 10 दिनों के भीतर निर्णय लेगा। यह भी बताया गया कि राज्य के गृह विभाग को सभी आवेदन केंद्र को भेजने होंगे।
दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से आज अदालत को बताया कि इस मामले में राज्य की कोई भूमिका नहीं है। राज्य ने कहा है कि आयोग ही सारा काम कर रहा है। वहीं केंद्र का दावा है कि राज्य को 90 दिनों के भीतर CAA का आवेदन केंद्र के पास भेजना होता है। केंद्र के सॉलीसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने हाई कोर्ट में बताया कि इस मामले में ऐसा नहीं किया गया है।
किसी व्यक्ति को नागरिक के तौर पर वैधता प्रदान करने का अधिकार केंद्र के पास है। चुनाव आयोग का इस संबंध में कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए केंद्र को पहले इस मामले पर निर्णय लेना होगा, और उसके बाद ही आयोग इस मामले को आगे बढ़ा सकता है।