कोर्ट का आदेश था कि स्कूल सर्विस कमिशन (SSC) को टेंटेड अथवा अयोग्य शिक्षकों की सम्पूर्ण सूची जारी करनी होगी। गुरुवार को राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने घोषणा करते हुए कहा कि यह सूची उसी दिन (27 नवंबर) को जारी की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि SSC पूरी निरपेक्षता और पारदर्शिता के साथ काम कर रहा है। SSC ने जिस तरीके से परीक्षा ली है, उन्हें नहीं लगता है कि ऐसा देश में और कहीं ली गयी होगी।
गुरुवार को ही जारी होगी सूची - शिक्षा मंत्री
सुप्रीम कोर्ट ने 31 दिसंबर तक स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया है। उसके आधार पर ही 11वीं-12वीं और 9वीं-10वीं स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए SSC की परीक्षा का रिजल्ट भी घोषित किया जा चुका है। इसके साथ ही 11वीं-12वीं स्तर की इंटरव्यू के लिए भी SSC ने अभ्यर्थियों की सूची जारी कर दी है। लेकिन आरोप लगाया जा रहा है कि 11वीं-12वीं स्तर पर इंटरव्यू की सूची में टेंटेड यानी अयोग्य अभ्यर्थियों का भी नाम है। इसे लेकर हाई कोर्ट में भी मामला दायर किया गया है।
उस मामले में ही न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने आदेश दिया है कि अयोग्य अभ्यर्थियों को चिह्नित कर SSC को उनकी सम्पूर्ण सूची जारी करनी होगी। इस सूची में सिर्फ अयोग्य अभ्यर्थियों का नाम ही नहीं बल्कि अयोग्य अभ्यर्थियों के नाम के साथ उनके बारे में विस्तृत जानकारी भी देनी होगी। सूची में उनका पता और पिता के बारे में जानकारी भी देनी होगी। ब्रात्य बसु ने बताया कि कोर्ट के आदेशानुसार गुरुवार को ही अयोग्य अभ्यर्थियों की सूची SSC जारी करेगा।
क्या 31 दिसंबर तक पूरी होगी प्रक्रिया?
वहीं दूसरी तरफ यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या 31 दिसंबर तक नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को संपन्न करना संभव है? इस बारे में ब्रात्य बसु ने दावा करते हुए कहा, 'SSC का काम पूरी पारदर्शिता के नियुक्तियां करना है, जो SSC कर रहा है। 31 दिसंबर तक नियुक्ति की प्रक्रिया संपन्न करने के लक्ष्य पर ही SSC आगे बढ़ रहा है। हमें पूरी उम्मीद है।' ब्रात्य बसु से जब यह पूछा गया कि अयोग्य होने के बावजूद क्यों दिव्यांग अभ्यर्थी का नाम इंटरव्यू की सूची में थी? उन्होंने बताया कि यह SSC का ही फैसला है।
बुधवार को SSC के सभी मामले सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में वापस भेज दिया है। गुरुवार को शिक्षा मंत्री ने इस बारे में बताया कि मुझे नहीं लगता है कि न्यायाधीश या कोर्ट के अलग होने से कानून अथवा विचार बदलता है। मुझे नहीं लगता है कि न्यायाधीश पक्षपाती हो सकते हैं।