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होगला पत्तों से तैयार हो रहे हैं गंगासागर तीर्थयात्रियों के आशियानें, मेदिनीपुर से तीर्थस्थल पर पहुंच रहे हैं पत्तों के खेप

कुछ सालों से निमाई के दो बेटे विश्वजीत और दीपक चादर लेकर गंगासागर की ओर जाते हैं। नाव के मार्ग से कोलाघाट से गंगासागर जाने में नौ घंटे का समय लगता है। इस बार गंगासागर मेले के लिए झोपड़ियों के लिए लगभग 90 हजार होगलेर चादरों का आर्डर है।

By लखन भारती

Dec 28, 2025 17:11 IST

भारत के सभी तीर्थ स्थलों में गंगासागर को एक महातीर्थ माना जाता है। 'सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार' इस कहावत के पीछे मान्यता है कि जो पुण्य फल की प्राप्ति किसी श्रद्धालु को जप-तप, तीर्थ यात्रा, धार्मिक कार्य आदि करने पर मिलता है, वह उसे केवल एक बार गंगा सागर की तीर्थयात्रा करने और स्नान करने से मिल जाता है। मकर संक्रांति पर गंगा-सागर संगम पर पुण्य स्नान होता है। पश्चिम बंगाल सरकार और दक्षिण 24 परगना जिला प्रशासन की ओर से तीर्थयात्रियों के लिए हर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। मेले के आयोजन में अभी भी 12 दिनों का समय है। सरकारी और प्रशासनिक तैयारियों के एक कड़ी में तीर्थयात्रियों के लिए आशियानें तैयार किये जा रहे हैं, और या आशियानें होगला पत्तों से तैयार किये जाते हैं।

कहना उचित होगा कि होगला(एक प्रकार की घास/पत्ती) के पत्ते से अस्थायी आश्रय (झोपड़ियां) बनाए जा रहे हैं, जो लाखों तीर्थयात्रियों को मकर संक्रांति पर गंगा-सागर संगम पर पुण्य स्नान के दौरान ठंड और मौसम से बचाने के लिए लगाए जाते हैं, यह पारंपरिक और सस्ता विकल्प है जो लाखों तीर्थयात्रियों के लिए बुनियादी सुविधा और सुरक्षा प्रदान करती हैं, जिससे यह कठिन तीर्थयात्रा थोड़ी सुगम बन सके। प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय समुदाय भी तैयार करता है, ताकि लोग कष्टों के बावजूद मोक्ष प्राप्त कर सकें।

शिविर बनाने के लिए गंगासागर जा रहा है होगला का चादर, कोलाघाट में व्यस्तता

जलमार्ग से अधिकांश होगला का चादर भेजा जा रहा है। पहले के मुकाबले इस बार होगला पत्तों की मांग काफी बढ़ गई है। होगला पत्ते, जो मेदिनीपुर के कोलाघाट से भेजे जा रहे हैं। अब कोलाघाट के होगला कलाकार होगला पत्तों की चादर बना रहे हैं। वे बता रहे हैं कि अधिकांश होगला की चादर जल मार्ग से भेजी जा रही है। पिछली बार की तुलना में इस बार मांग काफी बढ़ गई है। इससे अंदेशा लगाया जा सकता है कि इस बार तीर्थयात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।

स्थानीय कलाकार बता रहे हैं कि कोलाघाट के नगुरिया से कई वर्षों से होगला की चादरें गंगासागर जाती आ रही हैं। हर साल कार्तिक महीने से नगुरिया के कलाकार चादर बनाने में व्यस्त हो जाते हैं। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मुख्य रूप से तमलुक, शहीद मतंगिनी इलाका, कोलाघाट और गेंवखाली क्षेत्रों में रूपनारायण के चारे में होगला घास उगती है। कार्तिक की शुरुआत में इन्हें काटा जाता है। स्थानीय लोगों से आवश्यक पत्ते खरीदते हैं नगुरिया के होगला व्यापारी। यहीं से दो प्रकार की होगला चादरें बनाई जाती हैं। मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले इन्हें नाव से गंगासागर भेज दिया जाता है।

नगुरिया के लगभग तीन सौ कलाकार उस चादर बनाने के काम में लगे हैं। गाँव के विश्वजीत अदक, गोपाल कारक, प्रदीप अदक पारंपरिक रूप से इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। उनके पूर्वज भी गंगासागर में होगला पत्तियों की चादरें सप्लाई किया करते थे। विश्वजीत बता रहे हैं कि पहले प्रति बंडल होगला खरीदने में 400 रुपये खर्च होते थे। इस बार प्रति बंडल होगला की कीमत 60 से 70 रुपये बढ़ गई है। एक बंडल होगला से सात बड़ी और तीन छोटी चादरें बनाई जा सकती हैं। चादर बनाने के लिए कच्ची होगला को धूप में सुखाना पड़ता है। उसके बाद आवश्यक आकार में इन्हें काट दिया जाता है। धागे की मदद से प्रत्येक होगला घास को जोड़कर चादर बनाई जाती है। दो प्रकार की चादरें बनाई जाती हैं - साढ़े 8 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा, दूसरा वाला साढ़े 7 फुट लंबा और 5 फुट चौड़ा।

लगभग साढ़े चार दशक पहले गंगासागर में होगला चादर की आपूर्ति का काम कोलाघाट के नागुरिया निवासी निमाई आदक ने शुरू किया था। कुछ सालों से निमाई के दो बेटे विश्वजीत और दीपक चादर लेकर गंगासागर की ओर जाते हैं। नाव के मार्ग से कोलाघाट से गंगासागर जाने में नौ घंटे का समय लगता है। इस बार गंगासागर मेले के लिए झोपड़ियों के लिए लगभग 90 हजार होगलेर चादरों का आर्डर है। पिछली बार की तरह इस बार भी बड़े होगलेर चादर 140 रुपये और छोटे चादर 125 रुपये की दर से बेची गई। कच्चे माल की कीमत बढ़ने के बावजूद होगलेर चादर की कीमत ज्यादा नहीं बढ़ी। हालांकि कीमत नहीं बढ़ी लेकिन मांग बढ़ गई। होगलेर का उत्पादन भी अच्छा होने के कारण व्यापारियों को कच्चा माल पाने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। कुल मिलाकर गंगासागर मेले से पहले होगला व्यवसायियों के चेहरे पर बड़ी मुस्कान है।

होगला व्यवसायियों के अनुसार, 'पूर्व मेदिनीपुर के अलावा उलुबेरिया से भी इस बार होगला की पत्तियाँ खरीदनी पड़ीं। मांग अच्छी होने के कारण आय भी अच्छी हो रही है।' जो लोग होगला की चादर बनाते हैं, उन्हें 100 से 200 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है। पूरे साल खेती के काम के साथ-साथ होगला की चादर बनाकर अतिरिक्त आय अर्जित करते हैं नगुरिया के निवासी। इस काम में महिलाएं भी मदद करती हैं। उनमें से एक, नीलिमा आदक कहती हैं, 'गंगासागर मेला के तीन महीने पहले से ही होगला की चादर बनाना शुरू कर देती हूं। घर के काम निपटा कर यह काम करने से अतिरिक्त आय होती है।'

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