AI मानव ज्ञान का पूरक है, उसकी जगह नहीं ले सकता: न्यायमूर्ति महेश्वरी

श्रीलंका के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि मोहन पीरिस ने कहा कि AI मेशा मानव नियंत्रण में रहना चाहिए और इसके परिणाम मानव द्वारा तय किए गए नियम और नैतिक ढांचे के अनुसार होने चाहिए।

By डॉ. अभिज्ञात

Nov 24, 2025 19:18 IST

सोनीपतः कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल तकनीक के कानूनी, नैतिक और सामाजिक पहलुओं पर केंद्रित एक सेमिनार में यह चर्चा की गई कि कैसे AI का उपयोग किया जाए ताकि वह मानव ज्ञान का पूरक बने, इसके दुरुपयोग से बचा जा सके और डिजिटल भविष्य जिम्मेदार तरीके से विकसित हो। हरियाणा के सोनीपत में SRM यूनिवर्सिटी, दिल्ली-NCR के विधि संकाय द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 23वीं भारत कानून आयोग के अध्यक्ष और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी ने सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि AI मानव ज्ञान की मदद करने वाला है, इसकी जगह लेने वाला नहीं। AI में स्वतंत्र सोच नहीं होती और यह कभी-कभी सही या गलत की परवाह किए बिना उत्तर दे सकता है। AI से जुड़े कानूनी और नैतिक सवाल जैसे अधिकार और दायित्व किसके होंगे, यह आज के समय में बड़ी चुनौती बन रहे हैं।

सम्मेलन में श्रीलंका के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि मोहन पीरिस ने कहा कि AI अब कानूनी कामकाज का अहम हिस्सा बन गया है, चाहे वह फैसले लिखना हो, कानूनी दस्तावेज बनाना हो या शोध करना। लेकिन AI हमेशा मानव नियंत्रण में रहना चाहिए और इसके परिणाम मानव द्वारा तय किए गए नियम और नैतिक ढांचे के अनुसार होने चाहिए।

SRM यूनिवर्सिटी के कुलपति ने डिजिटल तकनीक और इंटरनेट से समाज में आए बदलावों पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि भारत में AI के लिए कानून बनाते समय नैतिक और संवैधानिक सुरक्षा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, रोमानिया, श्रीलंका, सिंगापुर और कई अन्य देशों के शिक्षाविद और विशेषज्ञ शामिल हुए जिससे यह सत्र वास्तव में वैश्विक बन गया।

समापन सत्र में प्रसिद्ध न्यायशास्त्री प्रो. उपेंद्र बक्षी ने कहा कि AI का इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है।तकनीक मानव द्वारा बनाई जाती है, लेकिन बिना मानव भाव के यह न्याय नहीं कर सकती। नई तकनीकें लागू करने से पहले मानवाधिकारों पर प्रभाव का मूल्यांकन करना जरूरी है।

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