भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने सोमवार को शपथ ली। शपथ ग्रहण से पहले ही उन्होंने यह संकेत दे दिया था कि 1 दिसंबर को वे देश के नागरिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक विशेष ‘सरप्राइज़’ लेकर आएंगे।
मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले ही न्यायमूर्ति सूर्य कांत कई युगांतकारी, संवैधानिक और नीति-निर्माण से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल रहे हैं। इन फैसलों ने भारत की न्यायिक दृष्टि, संवैधानिक व्याख्या और राष्ट्रीय नीति को एक स्पष्ट दिशा दी है।
अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में निर्णायक भूमिका
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान का अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू–कश्मीर को दी गई विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया। इस निर्णय को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं।
दिसंबर 2023 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिसमें न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल थे ने विस्तृत सुनवाई के बाद यह फैसला दिया कि जम्मू–कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का निर्णय संविधान के अनुरूप है। यह निर्णय हालिया इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसलों में से एक माना जाता है।
वन रैंक वन पेंशन (OROP) नीति को बरकरार रखने वाला ऐतिहासिक निर्णय
सशस्त्र बलों में वर्षों से लंबित वन रैंक वन पेंशन (OROP) नीति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की बेंच ने सुनवाई की। इस बेंच में न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल थे। बेंच ने OROP नीति को पूरी तरह बरकरार रखा और माना कि यह नीति सशस्त्र बलों के लिए उचित और तार्किक है।
पेगासस स्पाइवेयर मामला-राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में अनियंत्रित अधिकार नहीं
पेगासस स्पाइवेयर विवाद भारतीय राजनीति के सबसे बड़े विवादों में से एक रहा। केंद्र सरकार पर आरोप था कि नागरिकों, पत्रकारों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की जासूसी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए 2021 में एक तकनीकी समिति गठित की। इस आदेश वाली पीठ में न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी थे। बेंच ने स्पष्ट कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को असीमित छूट नहीं दी जा सकती और नागरिकों की निजता का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
समलैंगिक विवाह पर ऐतिहासिक सुनवाई और संवैधानिक व्याख्या
भारत में समलैंगिक विवाह का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील और चर्चा का विषय रहा है। 17 अक्टूबर 2023 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर अपना निर्णय सुनाया। इस बेंच में न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल थे। पीठ ने साफ कहा कि-अदालत कानून नहीं बना सकती, सिर्फ उसकी व्याख्या कर सकती है। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना केवल संसद का अधिकार है। यह फैसला भारत में विवाह कानून की संवैधानिक सीमाओं को स्पष्ट करता है।
बिहार में वोटर सूची संशोधन (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
बिहार में SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया के दौरान करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के आरोप के बाद विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और एक अन्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच ने इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाई और निर्देश दिया कि जिनके नाम अनुचित तरीके से हटाए गए हों, उनके पूरे विवरण अदालत में प्रस्तुत किए जाएं। यह आदेश चुनावी पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण माना गया।
लिंग असमानता पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत का क्रांतिकारी फैसला
एक मामले में आरोप लगा था कि एक महिला पंचायत प्रमुख को लिंग आधारित भेदभाव के कारण अन्यायपूर्ण तरीके से पद से हटाया गया। बाद में आरोप सही पाए गए और महिला को पद पर पुनः बहाल किया गया। इसी मामले के आधार पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने निर्देश जारी किया कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित देशभर के सभी बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी चाहिए। यह आदेश भारत की कानूनी व्यवस्था में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाला ऐतिहासिक कदम माना जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा चूक पर जांच के लिए पैनल
2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे में सुरक्षा चूक हुई थी। इस संवेदनशील मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की। इस आदेश देने वाली बेंच में भी न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल थे। बेंच ने कहा था कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में न्यायिक जांच आवश्यक होती है ताकि राजनीतिक विवादों से परे निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।