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क्या आपको भी हो सकता है डिमेंशिया? इन 6 शुरुआती लक्षणों को कभी न करें नजरअंदाज

याददाश्त कमजोर होना, सही-गलत का फैसला न कर पाना, रोजमर्रा के काम करने की क्षमता खो देना, ये सभी डिमेंशिया के प्रभाव से हो सकते हैं।

By सायन कृष्ण देव, Posted by: प्रियंका कानू

Dec 21, 2025 19:23 IST

डिमेंशिया मस्तिष्क से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है, जिसके कारण याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता, निर्णय लेने की शक्ति और दैनिक कार्य करने की दक्षता धीरे-धीरे कम होती जाती है। समय के साथ व्यक्ति अल्जाइमर, वैस्कुलर डिमेंशिया या लुई बॉडी डिमेंशिया जैसी बीमारियों से प्रभावित हो सकता है। इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, केवल लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है और जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है। यदि शुरुआती अवस्था में ही डिमेंशिया के लक्षण पहचान लिए जाएं तो उपचार और देखभाल अपेक्षाकृत आसान हो जाती है। लेकिन सवाल यह है कि कैसे समझें कि आप डिमेंशिया से प्रभावित हो सकते हैं?

‘द लैंसेट साइकियाट्री’ में प्रकाशित एक हालिया शोध के अनुसार कुछ ऐसे संकेत हैं जो डिमेंशिया के खतरे की ओर इशारा कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने लगभग 6,000 वयस्कों पर 20 वर्षों से अधिक समय तक अध्ययन किया। खासकर 40–60 वर्ष की उम्र के लोगों में यदि ये लक्षण दिखें, तो समय रहते सतर्क हो जाना जरूरी है।

डिमेंशिया के 6 शुरुआती लक्षण :-

आत्मविश्वास की कमी

अगर किसी भी काम को करते समय अपनी क्षमता पर लगातार संदेह होता है और बार-बार दूसरों की मदद की जरूरत महसूस होती है तो यह सामान्य नहीं है।

साधारण समस्याओं को हल करने में परेशानी

रोजमर्रा के कामों में भी दिक्कत आने लगे, जैसे पंखा बंद करना भूल जाना या बाथरूम का रास्ता भूल जाना तो इसे नजरअंदाज न करें।

लोगों से दूरी बनाना

अगर आप धीरे-धीरे लोगों से मिलना-जुलना कम कर रहे हैं और अपने करीबी लोगों से भी दूरी बनाने लगे हैं तो यह चिंता का संकेत हो सकता है।

बिना कारण चिंता होना

बहुत छोटी-छोटी या बेअसर बातों को लेकर लगातार चिंता में रहना डिमेंशिया का शुरुआती संकेत हो सकता है।

काम के प्रति रुचि खत्म होना

ऑफिस जाना अच्छा न लगना, पारिवारिक जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करना, ऐसे बदलावों पर ध्यान देना जरूरी है।

एकाग्रता की कमी

किसी भी काम में मन न लगना, पढ़ाई या रोजमर्रा के कामों पर ध्यान केंद्रित न कर पाना भी एक महत्वपूर्ण संकेत है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि 40–60 वर्ष की उम्र में ये लक्षण दिखने लगें, तो डिमेंशिया का खतरा कई गुना बढ़ सकता है।

क्या चिंता या खराब मूड का मतलब हमेशा डिमेंशिया होता है?

नहीं, ऐसा जरूरी नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार ये लक्षण डिमेंशिया में आम हैं लेकिन केवल इन्हीं के आधार पर निष्कर्ष निकालना सही नहीं है। हालांकी यदि ये सभी लक्षण एक साथ दिखें, तो चुप बैठना ठीक नहीं। मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर या मनोवैज्ञानिक से सलाह लें। थेरेपी, जीवनशैली में बदलाव, पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और नियमित व्यायाम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ये लक्षण दिख सकते हैं लेकिन इन्हें केवल उम्र या काम का तनाव मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी है।


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