नल के पानी पर अविश्वास की वजह से बोतलबंद पानी की खपत तेजी से बढ़ी है, जबकि कई विकसित देशों में नल का पानी कड़े नियमों और दैनिक परीक्षणों से गुजरता है। इसके विपरीत, बोतलबंद पानी की जांच कम होती है और बोतलबंद कंपनीयां गुणवत्ता संबंधी जानकारी सार्वजनिक करना जरूरत नहीं समझती।
2025 के एक अध्ययन के अनुसार बोतलबंद और जार में मिलने वाले पानी में ज्यादा बैक्टीरिया पाए गए। कई शोध बताते हैं कि बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक, रसायन और बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। 2024 के अध्ययन में कुछ ब्रांडों में प्रति लीटर हजारों प्लास्टिक कण मिले। प्लास्टिक बोतलों से एंटिमनी, फ्थेलेट्स और बीपीएस/बीपीएफ जैसे रसायन गर्मी में पानी में घुल सकते हैं, जो हार्मोन्स को प्रभावित कर सकते हैं, हालांकि इनके दीर्घकालिक प्रभाव अभी पूरी तरह ज्ञात नहीं हैं।
बोतलबंद पानी जीवाणुरहित नहीं होता। खुली बोतल को गर्म स्थान पर रखने या सार्वजनिक उपयोग से बैक्टीरिया बढ़ सकते हैं। दूसरी ओर, नल के पानी में उपयोगी खनिज होते हैं और कई जगह दांतों के संरक्षण के लिए फ्लोराइड भी मिलाया जाता है। शोध के अनुसार बोतलबंद पानी पीने वाले बच्चों में दांत क्षय की समस्या अधिक देखी गई है। पर्यावरण पर बोतलबंद पानी का बोझ अधिक है। हर मिनट लगभग दस लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं। एक लीटर बोतलबंद पानी बनाने में नल के पानी की तुलना में हजारों गुना अधिक ऊर्जा और ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है।
इन समस्याओं को देखते हुए सोलर2वॉटर जैसी सौर-चालित तकनीकें विकसित की जा रही हैं, जो हवा से ही स्वच्छ पानी बनाकर प्लास्टिक और बड़े जल ढाँचों पर निर्भरता कम कर सकती हैं। आपात स्थिति या असुरक्षित क्षेत्रों को छोड़कर, विकसित देशों में बोतलबंद पानी नल के पानी से न तो अधिक सुरक्षित है और न ही अधिक शुद्ध।