एई समय: माता-पिता के बीच रिश्ते में आयी दूरी में सबसे ज्यादा पीड़ा उनके नाबालिग बच्चों को झेलनी पड़ती है। मानसिक तौर पर बच्चे पूरी तरह से परेशान हो जाते हैं। उन्हें लेकर माता-पिता के बीच कस्टडी को लेकर खींचतान भी होती है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट कानूनी दिशा-निर्देश की भी कमी है।
माता-पिता के वैवाहिक कलह की स्थिति में बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग को लेकर 2021-22 में कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) में मुकदमा दायर किया गया था। यह मुकदमा डॉ. रातुल राय और कोलकाता स्थित संस्था 'आयुष्मान इनिशिएटिव फॉर चाइल्ड राइट्स' की ओर से अरिजीत मित्र और बाद में 'अंतरा' नाम की एक संस्था ने दायर किया था।
इनमें से हर एक ने महाराष्ट्र चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के 2014 में प्रस्तावित 'चाइल्ड एक्सेस एंड कस्टडी गाइडलाइंस एंड पेरेंटिंग प्लान' का नमूना पेश किया। 2022 के 19 जुलाई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की डिवीजन बेंच ने इस विषय में रूल्स कमेटी को निर्देश दिया।
रूल्स कमेटी की सिफारिश जमा होने के बाद वर्तमान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सौमेन सेन की डिवीजन बेंच ने प्राथमिक रूप से उसे स्वीकार करके हाईकोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित करने का हाल ही में आदेश दिया है।
निर्देशिका की मुख्य बातें -
समान अभिभावकत्व: बच्चे के कल्याण के लिए मां-पिता दोनों के साथ ही उसका संबंध बनाए रखने पर जोर दिया गया है। दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मौसी, चाचा-चाची के साथ भी बच्चे के संपर्क पर जोर।
जल्द समय निर्धारण: मुकदमे के समन के एक सप्ताह के भीतर बच्चे के साथ पिता या माता की अस्थायी मुलाकात का समय निर्धारित करना और 60 दिनों में अंतिम निर्णय बताना अनिवार्य।
नियमित संपर्क: बच्चा मां के पास रहता है तो सप्ताहांत में रात के समय सहित सप्ताह के अन्य दिन, छुट्टी के दिन और त्योहारों पर पिता के पास रहने का अधिकार (पिता के पास रहने पर इसका उल्टा होगा)।
कोर्ट परिसर में नहीं: बच्चों से केवल मित्रतापूर्ण माहौल में ही मुलाकात की जा सकेगी। अदालत परिसर में नहीं।
विशेष पर्यवेक्षक: मुलाकात की निगरानी के लिए मनोवैज्ञानिक, समाजसेवी या करीबी रिश्तेदार को विशेष पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त कर सकेगी अदालत।
झूठे आरोप पर दंड: यदि पता चलता है कि बच्चे के उत्पीड़न का आरोप झूठा है, तो झूठा आरोप लगाने वाले के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और उसे हिरासत में लेने का भी प्रावधान।
अंतरराष्ट्रीय मामले में: यदि बच्चे की कस्टडी लेने वाले माता या पिता विदेश में रहते हैं, तो ऑनलाइन मुलाकात और छुट्टी के समय बच्चे की अभिभावकता की व्यवस्था।
माता-पिता दोनों अयोग्य होने पर: दादा-दादी, नाना-नानी, अन्य रिश्तेदार या फोस्टर होम में बच्चे को रखने की व्यवस्था। जिसकी कड़ी निगरानी की व्यवस्था।
90 दिनों की सीमा: मुलाकात में बाधा पड़ने पर 90 दिनों के भीतर अदालत में आवेदन करना होगा, नहीं तो अदालत मान सकती है कि संबंधित पक्ष की सद्भावना नहीं है।
साप्ताहिक कस्टडी: बच्चा सप्ताह में एक बार पिता और अगले सप्ताह मां (या इसका उल्टा) के साथ रह सकता है। लेकिन सब कुछ बच्चे के कल्याण को ध्यान में रखकर।
मानसिक स्वास्थ्य पर विचार: यदि कोई पक्ष बच्चे को मानसिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करता है तो अदालत मनोवैज्ञानिक के माध्यम से मूल्यांकन का निर्देश दे सकती है।
इन दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन से बच्चों के मानसिक-सामाजिक विकास में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद की जा रही है और माना जा रहा है कि कस्टडी को लेकर दंपति के बीच लंबी कानूनी लड़ाई भी कम होगी।