मुजीब की बेटी को मौत की सज़ा, देश में मौजूद सभी संपत्तियों की ज़ब्ती पूर्व गृह मंत्री को भी फांसी, राज-साक्षी पूर्व पुलिस अधिकारी

राज-साक्षी बने पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अब्दुल्ला अल मामून को पाँच वर्ष की सज़ा सुनाई गई।

By Produced by रिनिका राय चौधुरी, Posted by डॉ.अभिज्ञात

Nov 18, 2025 08:25 IST

ढाका से-कुद्दुस अफ़राद

आशंका सच साबित हुई! मानवता-विरोधी अपराध के मामले में बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को दोषी ठहराते हुए अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल (ICT) ने मौत की सज़ा सुनाई। पदच्युत होने के बाद यह उनके खिलाफ पहले मामले का फैसला है। हसीना के विरुद्ध विभिन्न अदालतों और थानों में कुल 586 मुकदमे और भी लंबित हैं। पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मान खान कमाल को भी इसी मामले में मृत्युदंड तथा राज-साक्षी बने पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अब्दुल्ला अल मामून को पाँच वर्ष की सज़ा सुनाई गई। फैसले में हसीना और असदुज़्ज़मान खान कमाल की देश में मौजूद सभी संपत्ति ज़ब्त कर उसे देश के अधिकार में लेने का आदेश भी दिया गया।

फैसले के दौरान अदालत में वकीलों के साथ जुलाई आंदोलन में मारे गए कुछ लोगों के परिजन भी उपस्थित थे। न्यायाधीशों द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद अभियोजन पक्ष ने इसका स्वागत किया, लेकिन मारे गए लोगों के परिजनों ने पूर्व पुलिस प्रमुख की सज़ा को लेकर नाराज़गी जताई। फैसले के कुछ ही देर बाद सोशल मीडिया पर बयान जारी कर बांग्लादेश में प्रतिबंधित अवामी लीग ने इस फैसले को ख़ारिज कर दिया। मृत्युदंड प्राप्त अभियुक्त शेख हसीना ने भी इसे पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया। भारत में शरण लिए हुए हसीना ने अपने पाँच पृष्ठों के बयान में कहा कि उन्हें मौत की सज़ा देना दरअसल अवामी लीग को राजनीतिक रूप से निष्क्रिय करने की रणनीति है।

उम्मीद के मुताबिक, इस फैसले को अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनूस ने ऐतिहासिक बताया। साथ ही, इसके गंभीर महत्व को महसूस करते हुए सरकार ने जनता से शांति, संयम और जिम्मेदारी बनाए रखने की अपील की। यूनूस प्रशासन ने फैसले के बाद किसी भी तरह की उच्छृंखलता, हिंसा या अवैध गतिविधियों से दूर रहने की अपील भी की। खालिदा ज़िया की पार्टी बीएनपी ने भी इसे न्याय बताया। बीएनपी नेता सालाउद्दीन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल में न्याय स्थापित हुआ। यह फैसला उसकी मिसाल है। अपराध के हिसाब से यह सज़ा भले पर्याप्त न हो, लेकिन यह भविष्य में किसी भी सरकार या व्यक्ति को फासीवादी बनने से रोकेगी। जुलाई क्रांति में अग्रिम पंक्ति में रहे छात्रों की पार्टी ‘नेशनल सिटिज़न्स पार्टी’ (एनसीपी) और जमाते इस्लामी ने कहा कि शेख हसीना को उचित दंड मिला है।

सोमवार दोपहर, न्यायमूर्ति गोलाम मर्तुज़ा मजुमदार की अध्यक्षता में तीन-सदसीय अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल–1 ने फैसला सुनाया। अन्य दो सदस्य थे- न्यायमूर्ति शफिउल आलम महमूद और न्यायाधीश मोहितुल हक़ एनाम चौधरी। फैसले में कहा गया कि शेख हसीना के खिलाफ पाँच आरोप सिद्ध हुए हैं। एक में आजीवन कारावास और अन्य तीन में मृत्युदंड दिया गया। पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मान खान कमाल को एक आरोप में मृत्युदंड दिया गया। अभियोजन पक्ष ने सुनवाई के दौरान बार-बार आरोप लगाया था कि मानवता-विरोधी इन सभी अपराधों की योजना, आदेश और सर्वोच्च कमान शेख हसीना ही थीं।

1971 के मानवता-विरोधी अपराधों के लिए यह ट्राइब्यूनल 2010 में अपदस्थ आवामी लीग सरकार ने बनाया था। 5 अगस्त 2024 को आवामी लीग सरकार गिरने के बाद इस ट्राइब्यूनल का पुनर्गठन हुआ और मानवता-विरोधी अपराधों के आरोप में हसीना के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज किया गया। पुनर्गठित ट्राइब्यूनल की पहली सुनवाई पिछले वर्ष 17 अक्टूबर से शुरू हुई। उसी दिन हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी हुआ। बाद में इस वर्ष मार्च में पूर्व गृह मंत्री और पूर्व आईजीपी को अभियुक्त बनाने की अभियोजन की अर्जी मंजूर हुई।

इस मामले में कुल 54 गवाहों ने बयान दिया। इसके अलावा हसीना की बातचीत के ऑडियो–वीडियो, मीडिया रिपोर्टें और जब्त किए गए कारतूस आदि भी सबूत के रूप में पेश किए गए। गवाही पूरी होने के बाद 23 अक्टूबर को बहस का दौर समाप्त हुआ। जुलाई जनविद्रोह के दौरान हुए मानवता-विरोधी अपराधों के कारण तत्काल ही हसीना और असदुज़्ज़मान खान को मृत्युदंड देने की मांग चीफ प्रॉसिक्यूटर ताज़ुल इस्लाम और अटॉर्नी जनरल मो. असदुज़्ज़मान ने की थी।

सोमवार को फैसला आने के बाद हसीना की ओर से नियुक्त सरकारी वकील अमीर हुसैन ने कहा कि वह इस फैसले से आहत और दुखी हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपील करेंगे, तो उन्होंने कहा कि हसीना के आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी से पहले अपील का कोई अवसर नहीं है। फैसले के तुरंत बाद ही ढाका ने हसीना और असदुज़्ज़मान को सौंपने की मांग की। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि वे इन दोनों दंडित व्यक्तियों को शीघ्र बांग्लादेश के हवाले करें। दोनों देशों के बीच मौजूद प्रत्यर्पण संधि के अनुसार यह भारत की अनिवार्य जिम्मेदारी है। इसके कुछ देर बाद विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने घोषणा की कि वे भारत सरकार को इन दोनों को वापस भेजने के लिए एक और पत्र भेजेंगे।

फैसले के पहले ही दो विशाल एक्सकावेटर को धानमंडी 32 स्थित बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान संग्रहालय परिसर में ले जाया गया। इसी वर्ष फरवरी में शेख मुजीब और मुक्ति संग्राम की स्मृतियों से जुड़ा यह चार-मंज़िला घर ढहा दिया गया था। फैसले के पहले एक उग्र युवकों का समूह वहाँ पहुँचा और उन्होंने कहा कि वे इस ढहे हुए घर की जगह को साफ करके यहाँ खेल का मैदान बनाना चाहते हैं। बाद में पुलिस और सेना से बहस हुई, पुलिस पर ईंट–पत्थर फेंके गए। हालात काबू में लाने के लिए पुलिस ने साउंड ग्रेनेड चलाकर भीड़ को तितर-बितर किया।

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