ढाकाः अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-1 ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई है। अदालत ने बताया कि सिर्फ शेख़ हसीना ही नहीं, बल्कि पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मान खान कमाल और पूर्व पुलिस प्रमुख (IGP) चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून भी इन अपराधों में दोषी पाए गए हैं। शेख़ हसीना पर कुल पाँच आरोप थे, जिनमें दो आरोपों में उन्हें मृत्यु-दंड और एक आरोप में आजीवन कारावास की सजा दी गई है। फैसले से पहले हसीना ने एक ऑडियो संदेश जारी कर कहा कि उन्हें इन निर्णयों की कोई परवाह नहीं है, 'अल्लाह ने जिंदगी दी है, वही लेगा।’
फैसला सुनाए जाने के बाद अदालत कक्ष तालियों से गूंज उठा, लेकिन न्यायाधीश ने तुरंत सभी को शांत रहने की सलाह दी। असदुज़्ज़मान खान को भी मृत्युदंड सुनाया गया, जबकि चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून को पाँच वर्ष की सजा दी गई है क्योंकि उन्होंने सरकारी गवाह बनने का फैसला किया था। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी महिला को मृत्युदंड दिया गया है। यह फैसला न्यायमूर्ति गोलाम मर्तूजा मोजुमदार की अध्यक्षता वाले पीठ ने सुनाया, जिसमें न्यायमूर्ति मोहम्मद आलम महमूद और न्यायमूर्ति मोहितुल हक़ एनाम चौधरी शामिल थे। अदालत ने हसीना के खिलाफ 453 पन्नों का विस्तृत फैसला पढ़ा, जिसमें छह खंड शामिल हैं। हसीना को जिन आरोपों में दोषी पाया गया उनमें उकसाने वाले भाषण देना, घातक हथियारों के उपयोग का आदेश देना और पुलिस को निष्क्रिय करके दमन के विरुद्ध कोई रोकथाम कदम न उठाना शामिल है।
फैसला भारतीय समयानुसार सुबह 10:30 बजे घोषित होना था, लेकिन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन ने शुरुआत में बताया कि फैसला 453 पन्नों का है और लगातार काम के कारण वे कम सो पाए हैं इसलिए थोड़ी देर की देरी हो गई। शेख़ हसीना, असदुज़्ज़मान खान और अल-ममून पर पाँच गंभीर आरोप लगाए गए थे, जिनमें उकसाने वाले बयान, आंदोलनकारियों पर घातक हथियारों के उपयोग का आदेश, बेगम रुकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की गोली मारकर हत्या, चांक्खारपुल में छह प्रदर्शनकारियों की हत्या और अशुलिया में छह लोगों को जला कर मारने का आरोप शामिल था। अभियोजन पक्ष ने अपने अंतिम तर्क में शेख़ हसीना सहित सभी अभियुक्तों के लिए अधिकतम दंड यानी फांसी की मांग की थी, जबकि हसीना ने इन आरोपों को राजनीतिक साज़िश बताया था।
चूंकि शेख़ हसीना और असदुज़्ज़मान दोनों ही इस समय बांग्लादेश से बाहर हैं, इसलिए कानून विशेषज्ञों का कहना है कि वे अब इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर पाएंगे क्योंकि किसी फैसले को चुनौती देने के लिए दोषी व्यक्ति को पहले आत्मसमर्पण करना होता है और फैसला आने के 30 दिनों के भीतर अपील दाखिल करनी होती है। केवल गिरफ्तार अभियुक्तों को ही अपील करने का अवसर मिलता है।