पूजा के बाद अक्सर प्रदूषण का कारण बन जाती हैं माला, चांदमाला, फूल जैसी पूजा सामग्री। इसको लेकर पूजा समितियों में भी जागरूकता बढ़ी है। बाजार की मांग को समझकर कालना के व्यापारियों ने इस बार पर्यावरण अनुकूल माला, चांदमाला और फूल बनाए हैं।
कपड़े के फूल, माला, कागज की प्रिंटेड चांदमाला की इस बार अच्छी बिक्री हो रही है। यहां की माला और चांदमाला कोलकाता, आसनसोल, दुर्गापुर के थोक व्यापारियों के माध्यम से देश के साथ-साथ विदेश में भी जाती है।
रंगीन चांदमाला, फूल, माला की मांग दुर्गापूजा से लेकर रास तक चरम पर पहुंच जाती है। कालीपूजा में भी माला और चांदमाला की काफी मांग रहती है। कालना के बारुईपाड़ा, नागरगाछी, धात्रीग्राम, बाघनापाड़ा समेत विभिन्न इलाकों के करीब पांच सौ कारीगर फूल, माला और चांदमाला बनाने के काम में जुटे हैं। यहां के सामान की मांग असम, झारखंड, बिहार में भी है। विश्वकर्मा पूजा से ही शुरू हो जाता है मौसम। इस बार विश्वकर्मा पूजा और दुर्गापूजा बहुत नजदीक होने के कारण कारीगरों पर काम का दबाव बढ़ गया है।
अब महालया से ही शुरू हो जाती है दुर्गापूजा। उससे पहले माला, चांदमाला, फूल पहुंचा देने होंगे। इन सामग्रियों को बनाने के कारखाने बारुईपाड़ा में हैं। कारखाने के मालिक सुब्रत पाल कह रहे थे कि पर्यावरण प्रदूषण का एक प्रमुख कारण प्लास्टिक है। इसे हमने इस बार हटा दिया है। अब माला और चांदमाला बनाने में कपड़ा, कागज, जूट जैसी पर्यावरण अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे कीमत कम होने के साथ प्रदूषण की मात्रा भी कम होगी।
एक अन्य व्यापारी मामनी पाल ने कहा कि कपड़े से बने फूलों की अच्छी मांग है। जरी की माला की भी मांग है। कोरियन कागज के फूल और वेलवेट कागज के फूलों की भी अच्छी बिक्री हो रही है। उन्होंने बताया कि चांदमाला कागज पर छापी जा रही है। ग्राहकों की पसंद के अनुसार दस से उन्नीस हाथ तक की चांदमाला बनाकर दी जा रही है।