तेजपत्ते की खेती से इस जिले में 400 करोड़ रुपये का कारोबार , पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो रहे।

सिर्फ 20 साल पहले पश्चिम बंगाल में तेजपत्ते की खेती नहीं होती थी। अब राज्य में उत्तरी दिनाजपुर तेजपत्ता के उत्पादन का केंद्र बन गया है।

By Devdeep Chakraborty, Posted by: Shweta Singh

Oct 03, 2025 14:48 IST

नाम में ही जिसके 'तेज' है। खेती से होने वाली आय के मामले में भी यह पेड़ 'तेजी' दिखा सकता है। तेजपत्ते की खेती ने उत्तर दिनाजपुर के किसानों के लिए नए रास्ते खोले हैं। साल के अंत में अच्छा मुनाफा हो रहा है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।

तेजपत्ते की खेती कैसे शुरू हुई?

इसकी शुरुआत 2017 में हुई। उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज प्रखंड के उत्तर लक्ष्मीपुर गांव के किसान सुकुमार बर्मन ने धान, गेहूं और सरसों जैसी अन्य पारंपरिक फसलों की बजाय तेजपत्ते की खेती करने का फैसला किया। वर्तमान में वह 650 पेड़ों से सालाना 80-90 क्विंटल तेजपत्ते इकट्ठा करते हैं। सुकुमार हर तीन साल में 5 लाख रुपये कमाते हैं। उनकी सफलता से प्रेरित होकर उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज, हेमताबाद, कालियागंज और इस्लामपुर प्रखंडों और दक्षिण दिनाजपुर जिले के कुशमंडी के कई किसानों ने तेजपत्ते की खेती में रुचि दिखाई है।

रोजगार के अवसर

सिर्फ 20 साल पहले पश्चिम बंगाल में तेजपत्ते की खेती नहीं होती थी। आज उत्तरी दिनाजपुर तेजपत्ते के उत्पादन का केंद्र बन गया है। इसने न सिर्फ किसानों की किस्मत बदली है, बल्कि स्थानीय महिलाओं के लिए भी आजीविका के नए रास्ते खोले हैं। आज तेजपत्ता लगभग 400 करोड़ रुपये के कारोबार का जरिया बन गया है।

इसकी खेती कैसे की जाती है?

रायगंज के कमलाबाड़ी-2 ग्राम पंचायत के कस्बा महेशो इलाके के निवासी उत्तम कुमार घोष के पास 12 बीघा जमीन पर तेजपत्ते का बगीचा है। उत्तम ने बताया कि पौधे मुख्यतः बरसात के मौसम में लगाए जाते हैं। साल में एक बार खाद और छिड़काव किया जाता है। हालांकि पत्ते पेड़ के तीन-चार साल का होने पर बिकने लगते हैं लेकिन पत्ते मुख्य रूप से पेड़ के पांच साल का होने पर ही बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं। आठ महीने के अंतराल पर पत्ते बिकते हैं।

कुछ स्थानीय व्यापारी इन पत्तों को खरीदते हैं। एक बीघा जमीन पर इसकी खेती से लगभग 30-40 हजार रुपये की कमाई होती है। इसके उत्पादन में खाद, स्प्रे और मजदूरी का 50 प्रतिशत खर्च आता है। प्रतिदिन 500 रुपये की मजदूरी का भुगतान किया जाता है। तेजपत्तों को कोलकाता, ओडिशा सहित राज्य के बाहर विभिन्न स्थानों पर भेजा जाता है।

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