वे पांचों हर सुबह बड़े कॉलेज के मैदान में टहलने के लिए मिलते हैं। बातें करते हैं। एक दिन बातचीत में एक विचार आया। क्या हो अगर हम घर में खाए जाने वाले फलों के बीज फेंकने के बजाय उसे जमीन में बो दें? वे बीज पेड़ बन जाएंगे। हमें फल मिलेंगे और पर्यावरण को भी फायदा होगा। जैसे ही यह विचार आया पांचों दोस्तों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया।
पिछले साल उन्होंने मानसून की शुरुआत में गंगाजलघाटी के राधुरबाइद जंगल में विभिन्न फलों के बीज बोए थे। इस साल उन्होंने हाल ही में कॉलेज के पास के जंगल में आम, जामुन, कटहल, लीची और खजूर के लगभग 200 बीज बोए हैं। इस अनूठी पहल की शुरुआत करने वाले पांच लोग हैं- सुप्रकाश मंडल, आकाश घोष, देव धीवर, मानस दुबे और नीलाद्रिशेखर मजूमदार। उन्हें उम्मीद है कि इस साल अब तक अच्छी बारिश हुई है। इन बीजों से पौधे निकलेंगे। एक दिन ये पेड़ बन जाएंंगे।
सुप्रकाश मंडल ने बताया कि मानसून के पानी में पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे पर्यावरण की रक्षा होगी। इनमें फल लगेंगे तो हाथियों को रास्ते में ही भोजन मिल जाएगा। आने वाले दिनों में जंगल से सटे इलाकों के निवासियों को भी हाथियों के उपद्रव से राहत मिलेगी। पक्षी भी इन फलों को खा सकेंगे।
उन्होंने यह भी बताया कि सुनील नंदी पहले उनके साथ सुबह की सैर पर जाते थे। वे वन विभाग में कार्यरत थे, अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनकी सलाह पर ही फलों के बीज बिखेरे जाते हैं ताकि जंगल के जानवरों और पक्षियों को भोजन मिल सके।
नीलाद्रिशेखर मजूमदार ने बताया कि अब इन पांचों दोस्तों के घरों मेंजो भी फल खाया जाता है, उन सभी फलों के बीज को इकट्ठा करके सुखाया जाता है।इसके बाद एक दिन उन बीजों को थैलों में भरकर जंगल में बो दिया जाता है। ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने कुछ दिन पहले बरजोड़ा कॉलेज के पास के जंगल में बीजों को बोया था।इस बारे में पता लगने पर बरजोड़ा वन रेंज के बिट अधिकारी राजेश ठाकुर ने कहा था कि अच्छी पहल है।