मधुमक्खियों के गूंजन के माध्यम से जीवन का संदेश दे रही है बोसपुकुर परिजात क्लब की दुर्गा पूजा

पीली रोशनी का खेल जो माहौल को पूरी तरह से जादुई बना रहा है। परिजात क्लब के पूजा में मधुमक्खियों के जीवन को दर्शाया गया है। लेकिन इस थीम का वास्तविक उद्देश्य कुछ और है।

By Amit Chakraborty, Posted By : Moumita Bhattacharya

Sep 28, 2025 13:07 IST

एई समय : मधुमक्खी का छत्ता! एक नहीं बल्कि कई सारे। एक बड़ा और बाकी छोटे-छोटे। लेकिन सुंदरवन के जंगल या पश्चिम बंगाल के किसी ग्रामीण इलाके के घर में नहीं। हम यहां मधुमक्खी के जिस विशाल छत्ते की बात कर रहे हैं वह महानगर कोलकाता (Kolkata) में मौजूद है। इस छत्ते के अंदर मधुमक्खियां नहीं बल्कि इंसान प्रवेश कर सकते हैं।

इसके अंदर जाते ही दिखाई देगा, यहाँ छोटे-बड़े विभिन्न आकार के कई छत्ते बने हुए हैं। उन पर जगह-जगह मधुमक्खियों के झुंड चिपके हुए हैं। विभिन्न आकार और रंगों वाली मधुमक्खियों ने इस बार कसबा के बोसपुकुर परिजात क्लब के मैदान को अपना घर बना लिया है। इस बार क्लब की पूजा का थीम है 'गुंजन'। यह गुंजन है मधुमक्खियों की।

रानी मधुमक्खी का स्थान छत्ते के बीच में है। श्रमिक मधुमक्खियां इधर-उधर फैली हुई हैं। चारों ओर एक पीली आभा फैली हुई है। एक तरफ शहद का रंग। दूसरी तरफ पीली रोशनी का खेल जो माहौल को पूरी तरह से जादुई बना रहा है। परिजात क्लब की दुर्गा पूजा में मधुमक्खियों के जीवन को दर्शाया गया है। लेकिन इस थीम का वास्तविक उद्देश्य कुछ और है। यहां मधुमक्खियों के माध्यम से यह मानव जीवन कही गयी है।

यहां समझाया गया है कि मधुमक्खियों की तरह मनुष्य का जीवन भी गुंजनमय होना चाहिए। इसके साथ एक और बात समझाने की कोशिश यहां की गयी है। अक्सर नई पीढ़ी के बीच यह धारणा रहती है कि शहद एक 'ब्रांडेड उत्पाद' है। नई पीढ़ी यह समझती है कि शहद को कृत्रिम तरीके से बनाया जाता है। इस गलत धारणा को तोड़कर इस दुर्गा पूजा पंडाल में नई पीढ़ी को सच्चाई से रू-ब-रू करवाने का प्रयास किया गया है।

हालांकि वर्तमान समय में शहद को कृत्रिम तरीके से भी बनाया जा रहा है, लेकिन वास्तव में शहद प्रकृति का वरदान है। पूजा आयोजकों ने इस सच्चाई को ही सामने लाने का प्रयास किया है। साथ ही शहद के फायदे समझाना, पर्यावरण के संतुलन की रक्षा का संदेश भी दिया गया है।

पंडाल के अंदर असली शहद का स्टॉल भी लगाया गया है। यानी यहां पर सिर्फ छत्ते में प्रवेश करके एक शहदमय वातावरण को देखकर खाली हाथ लौटना ही नहीं बल्कि असली शहद का स्वाद भी चखने को मिलेगा। लेकिन इस पूजा पंडाल की खासियतें यहीं खत्म नहीं हो जाती हैं। इस पूजा पंडाल में मधुमक्खी के छत्ते बनाने के लिए इस्तेमाल हो चुकी कोल्ड ड्रिंक की फेंक दी गयी बोतलों का उपयोग किया गया है।

कसबा के बोसपुकुर के उक्त दुर्गा पूजा पंडाल के आयोजकों में शामिल शांतनु रायचौधरी ने बताया कि दुर्गा पूजा के थीम पर ही मुख्य रूप से काम किया है। इलाके के लोगों को एकजुट रखना, एकल परिवार के इस युग में भी उत्सव के मौसम में सभी को संयुक्त परिवार का अनुभव देने का प्रयास किया गया है। उनका कहना है कि साल भर की व्यस्तता के बीच भी हमने पाड़ा-कल्चर को जीवित रखा है। लैपटॉप, इंटरनेट ही जीवन नहीं है। इस बात को हम इस दुर्गा पूजा थीम के माध्यम से आज की पीढ़ी को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।

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