घर की पूजा होने के बावजूद यहां किसी भी सार्वजनिक पूजा कमेटी की तरह ही होती है। यहां की सजावट थीम के आधार पर भी की जाती है। लेकिन दुर्गापूजा शुरू करने से पहले देवी दशभुजा की अनुमति लेनी होती है। मां की अनुमति मिलने पर ही सुर परिवार की दुर्गा पूजा धूमधाम से शुरू होती है। यहां मां दुर्गा 18 किलो चांदी के गहनों से सजती हैं। लंबे 10 साल से 'आमादेर बाड़ी' (हमारा घर) की दुर्गा पूजा हो रही है।
'आमादेर बाड़ी' की दुर्गापूजा में जाति, धर्म, वर्ण का कोई भेदभाव नहीं होता है। यहां सभी को प्रवेश करने का समान अधिकार होता है। दुर्गा पूजा के सचिव से लेकर संपादक का पद पड़ोसी और सुर परिवार के सदस्य संभालते हैं। चंदननगर बारासत दशभुजा क्षेत्र में पिछले लगभग 10 सालों से शमीत सुर का परिवार रह रहा है। शमीत सुर के घर के मुख्य दरवाजे पर सामने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है 'आमादेर बाड़ी' (हमारा घर)।
उस घर के मालिक शमीत सुर पिछले 10 साल से देवी दुर्गा की आराधना कर रहे हैं। वे एक व्यवसायी हैं। लेकिन 'आमादेर बाड़ी' (हमारा घर), इस नामकरण के पीछे भी एक रोचक कहानी है। शमीत ने इस बारे में बताया कि प्रसिद्ध लोकगीत 'लाल पहाड़ीर देश' गीत के रचयिता स्वर्गीय राष्ट्रीय कवि अरुण चक्रवर्ती ने इस घर का नामकरण किया था।
इस पूजा में मोहल्ले के बच्चे-बुढ़े सभी लोग शामिल होते हैं और दिल खोलकर खुशियां मनाते हैं। पूजा के समय लोग सब कुछ भूलकर सिर्फ आनंद करते हैं। खाने-पीने से लेकर पूजा की तैयारियां तक सब कुछ सुर परिवार के सदस्य और पड़ोसी मिलकर खुशी-खुशी करते हैं।
चंदननगर के लीची तला इलाके में शमीत का पैतृक घर था। वहां से वर्ष 2015 में चंदननगर के बारासत में दशभुजा तला में आकर वह रहने लगे। शमीत और उनकी पत्नी काकुली सुर की इच्छा दुर्गा पूजा करने की थी। जैसा सोचा, वैसा ही काम किया। नए घर में प्रवेश के बाद ही उन्होंने घर में दुर्गा पूजा की शुरुआत कर दी थी। तब से ही उस घर में देवी दुर्गा की आराधना हो रही है। इस साल भी उनके पंडाल को थीम के आधार पर ही सजाया गया है। क्या जानते हैं कि यहां इस साल कौन से थीम पर पंडाल की साज-सज्जा की गयी है?
इस साल यहां गुजरात के अक्षरधाम मंदिर की तर्ज पर पंडाल का निर्माण किया गया है। इससे पहले यहां उड़ीसा के धवलगिरि, केरल के स्वर्ण मंदिर जैसे विभिन्न थीम पर पंडालों का निर्माण किया जा चुका है। यहां देवी को डाक के साज से सजाया जाता है। इसके साथ ही पहनाया जाता है 18 किलो चांदी के गहने।
पूजा में बलि प्रथा नहीं है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को यहां मां को विशेष भोग लगाया जाता है। नवमी के दिन कई हजार श्रद्धालुओं में भोग का वितरण किया जाता है। बताया जाता है कि यहां पहले कुमारी पूजा होती थी लेकिन अब वह नहीं होती है। इसका कारण बताया गया कि वर्ष 2021 में कोरोना संक्रमण से गृहिणी काकुली सुर की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद से ही इस घर में कुमारी पूजा को बंद कर दिया गया।
लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी सुर परिवार को दुर्गा पूजा करने से पहले दशभुजा से अनुमति लेनी पड़ती है। उनके घर से कुछ दूरी पर ही देवी दशभुजा का मंदिर है। पहले उस क्षेत्र में कोई दुर्गा पूजा नहीं होती थी। केवल दशभुजा की पूजा होती थी। इसलिए सुर परिवार दशभुजा मां की अनुमति लेकर पूजा शुरू करता है।