दल बदलुओं पर लगाम कसने का एनडीए का मास्टर प्लान तैयार

चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद राजग के सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे पर होगा अंतिम फैसला

By श्वेता सिंह

Sep 23, 2025 22:01 IST

पटनाः बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) के लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)में सीटों के बंटवारे पर चर्चा चल रही है। सूत्रों के अनुसार शुरुआती दौर की बातचीत हुई है। NDA के नेता बिहार चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला करेंगे।

सीटों का बंटवारा कब होगा राजग में?

चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने खुलासा कर दिया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)में शामिल पार्टियों के बीच कब सीटों के बंटवारे का ऐलान होगा। चिराग ने बताया कि बिहार में आगामी चुनावों के लिए एनडीए में सीट-बंटवारा नवरात्रि के दौरान अंतिम रूप ले लेगा। भाजपा सूत्रों ने भी संकेत दिया है कि यह रणनीति इसलिए है ताकि टिकट न मिलने पर कोई नेता पार्टी में बगावत न करे या चुनाव से ऐन पहले पार्टी न बदल ले।

राजग के सीटों का फार्मूला ऐसा होगा

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की सभी पांच पार्टियां मिल कर चुनाव लड़ेंगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू से एक सीट ज्यादा पर चुनाव लड़ा था। हालांकि विधानसभा में जदयू भाजपा से एक-दो ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक सीट-बंटवारे का फॉर्मूला लगभग तैयार है। बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं।राजग के दो बड़े खिलाड़ी जदयू और भाजपा दोनों 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। बाकी बची हुई 40 सीटें लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के बीच बांट दी जाएंगी।

सीटों की सौदेबाजी कर रहे चिराग पासवान

भाजपा नेताओं का मानना है कि चिराग पासवान राजग के लिए महत्वपूर्ण हैं। चिराग को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चहेता माना जाता है। यही वजह है कि चिराग पासवान 40 से ज्यादा सीट की सौदेबाजी कर रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार की जदयू उन्हें 20 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती। अगर भाजपा और जदयू 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो बाकी तीन सहयोगियों के पास 40 सीटों का दावा करने के लिए बचता है। ऐसे में चिराग पासवान को न चाहते हुए भी समझौता करना पड़ सकता है।

क्या होता है दलबदल कानून?

ये तो सब जानते हैं कि नेता किसी के अपने नहीं होते। अपने फायदे के हिसाब से हर मौसम में खासकर चुनावी मौसम में पाला बदलते रहते हैं। आम बोलचाल में लोग ऐसे नेताओं को दलबदलू नेता भी कहते हैं। इसको लेकर कानून भी बना है, जिसे अंग्रेजी में एंटी डिफ्केशन लॉ कहा जाता है। नेताओं के दलबदलने को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में संविधान में 92वां संशोधन किया था। इस संशोधन में दल बदल विरोधी कानून यानी एंटी डिफेक्शन लॉ पारित किया था। इस कानून को संविधान की 10वीं अनुसूची में रखा गया है।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक दलबदलुओं पर शिकंजा कसने के लिए ही राजग के सहयोगी दल अभी शुरुआती बातचीत कर रहे हैं। सीट-बंटवारे पर अंतिम निर्णय चुनाव की तारीखों के बाद ही लिया जाएगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि टिकट नहीं मिलने पर आखिरी समय में अक्सर नेता पार्टी छोड़ देते हैं। आखिरी समय में घोषणा से ऐसे पलायन या बगावत को रोका जा सकता है।

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