मां के हाथों ही 6 माह और तीन दिन की बच्ची की मौत। अपनी ही दुधमुंही बच्ची की हत्या की आरोपी पूजा दे (23) 'पोस्ट-पार्टम साइकोसिस' से पीड़ित बतायी जाती है। जांच अधिकारियों का मानना है कि अपने जीवन को लेकर अत्यधिक अनिश्चितता की बात सोच-सोचकर ही उन्हें अपने हाथों से ही अपनी बच्ची की हत्या कर सबूत छिपाने की कोशिश की। बताया जाता है कि इस मामले में मनोरोग विशेषज्ञों से भी बात की जा रही है।
'पोस्ट-पार्टम साइकोसिस' किस प्रकार की मानसिक बीमारी है? क्यों सिर्फ बच्चों को जन्म देने वाली माएं ही इस समस्या से प्रभावित होती है? क्या दीर्घकालिक मानसिक समस्याएँ इसके लिए जिम्मेदार हैं?
इन सवालों के बारे में अलीपुरदुआर जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक नीलाद्रि नाथ ने बताया कि आमतौर पर पहले से अगर कोई मानसिक समस्या रही हो तो बच्चे को जन्म देने के 42 दिन बाद तक माताओं के 'पोस्टपार्टम साइकोसिस' से पीड़ित होने का खतरा रहता है। अगर कोई इससे प्रभावित है तो उस पर हमेशा नजर रखनी पड़ती है। स्तनपान कराते समय भी मां के साथ किसी न किसी को जरूर होना चाहिए। उसे अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। इससे बच्चे को खतरा हो सकता है।
उन्होंने बताया कि महिला के इतिहास का विश्लेषण करने पर मुझे लगता है कि उसने इस बीमारी से प्रभावित होकर ही वह भयानक कृत्य किया होगा। जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि महिला की मां ने कुछ साल पहले ही आत्महत्या कर ली थी। उसके पहले पति ने भी इसी तरह आत्महत्या की थी।
उसकी लगभग डेढ़ साल पहले दूसरी शादी हुई थी। पुलिस पूछताछ में पूजा ने सब कुछ कबूल कर लिया है। उसका कहना है कि वह बच्चे नहीं चाहती थी क्योंकि उस समय वह असुरक्षित महसूस करती थी। इतना ही नहीं उसे यह भी लगता था कि उसकी बच्ची किसी बुरी शक्ति के प्रभाव में है।
नीलाद्रि का कहना है कि ऐसे मरीजों में एक अजीब तरह का 'डिल्यूशन' काम करता है। उनके दिमाग में बिल्कुल एक अलग ही दुनिया बसी होती है। यह भी संभव है कि गर्भावस्था के बाद उचित इलाज न मिलने से महिला का मानसिक संतुलन बिगड़ गया हो। जिला पुलिस अधीक्षक वाई रघुवंशी ने कहा कि हत्या के कारणों की जांच की जा रही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सबूतों के आधार पर वह कानून की नजरों में एक अपराधी ही है।