बंगाल के साइक्लिस्ट अभिषेक तुंगा ने पूरा किया हिमालय पर 3700 किलोमीटर का दुर्गम और रोमांचक सफर

खास बातचीत के दौरान अभिषेक तुंगा ने अपने इस मुश्किल भरे लेकिन रोमांचक सफर से जुड़े कई बातों को साझा किया।

By Shubham Ganguly, Posted By : Moumita Bhattacharya

Dec 05, 2025 18:50 IST

अभिषेक तुंगा (AT) कोई सामान्य प्रोफेसर नहीं हैं। लेक्चर और डिसर्टेशन सेशन के अलावा वह एक ट्रेलब्लेज़र हैं। अभिषेक ने लेह से अरुणाचल प्रदेश के किबिथु तक का सफर साइकिल से तय किया। तुंगा ने करीब 3,700 किलोमीटर का लंबा रास्ता साइकिल पर पूरा कर नया कीर्तिमान ही गढ़ा है। उन्होंने यह सफर 20 दिनों व 17 घंटे में पूरा किया है। अभिषेक तुंगा मेघनाद साहा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर हैं।

हमसे हुई खास बातचीत के दौरान उन्होंने अपने इस मुश्किल भरे लेकिन रोमांचक सफर से जुड़े कई बातों को साझा किया। आइए जानते है क्या कहा उन्होंने -

आपको 3,700 किमी लंबे ट्रांस-हिमालयन साइकिलिंग चुनौती को स्वीकार करने की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरा बैकग्राउंड ही माउंटेनियरिंग का है। हिमालय अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। मैंने हिमालय को कई तरीकों से एक्सप्लोर किया है। यहां कभी मुश्किल चढ़ाई की तो कभी अकेले ट्रेल-रनिंग भी की। मैंने तो एक दिन में ही ऐसे रास्तों को तय कर लिया है जिन्हें तय करने में दूसरों को 7 से 8 दिनों का समय लग जाता है। मेरा बहुत मन था कि मैं हिमालय पर पश्चिम से पूर्व या इसके विपरीत रास्ते को साइकिल से पूरा करुं। इसी वजह से मैंने यह चुनौती भी स्वीकार की।

सड़क पर आपको इतना लंबा समय बिताना पड़ा है। नींद, भोजन और आराम को कैसे मैनेज किया?

जब मैं ऊंचाई वाले दर्रों से गुजर रहा था तब मेरी साइकिल के एयर पंप ने काम करना बंद कर दिया। इससे मेरा कुछ समय बर्बाद हो गया था। जब मैं नीचे आया तो चंडीगढ़ से उत्तर प्रदेश के बीच तेज गर्मी थी। मुझे एक बार हीट स्ट्रोक भी हुआ था। इसके बाद से मैं सावधान हो गया। मैं दिन के समय आराम करता था और रात में साइकिल चलाता था। मैं पूरी रात हाईवे पर अकेले ही साइकिल चलाता था।

जब मैं नेपाल के पास था और फिर उत्तर बंगाल और असम को पार कर रहा था, उस समय भारी बारिश में फंस गया था। इस बारिश की वजह से ही उत्तर बंगाल में बाढ़ भी आयी थी। इस वजह से भी मेरा काफी समय बर्बाद हुआ। आगे असम से अरुणाचल प्रदेश की ओर बढ़ने पर मेरी तबीयत बिगड़ गयी। मुझे एक दिन के लिए सलाइन ड्रिप लगावानी पड़ी। इस बीच भी कई तरह की मुश्किलें आयी जैसे कभी मेरी साइकिल की चेन और गियरबॉक्स खराब हो जाते थे।

जिसे बनवाने के लिए लखनऊ जाना पड़ता था। फिर वापस हिमालय पर लौटता था। खतरों से बचने के लिए मैंने पहाड़ी इलाकों में रात के समय साइकिल नहीं चलाई। तेज गर्मी के दिनों में मैंने दिन के वक्त मैदानी इलाकों में साइकिल नहीं चला पाया। कुछ इस तरह से मैंने अपना पूरा शेड्यूल मैनेज किया था।

साइकिल राइड के दौरान सबसे बड़ी कौन सी चुनौती आई?

जब भी मुझे मैकेनिकल दिक्कतें आईं तो मुझे पता था कि मुझे ही उन्हें किसी भी तरह संभालना होगा। मैं उत्तर प्रदेश के हाईवे पर आधी रात को अपनी साइकिल ठीक कर रहा था। कभी-कभी साइकिल ठीक करने के लिए मैंने दूसरों से भी मदद ली। असम से अरुणाचल प्रदेश जाते समय एक बार के लिए तो मैंने इस सफर को रोक देने के बारे में भी सोचा, क्योंकि उस समय मैं पेट की गंभीर समस्या से जुझ रहा था।

कैलोरी नहीं लेने की वजह से मैं बहुत थक गया था। डिहाइड्रेटेड था। मन में आता कि ऐसी हालत में मैं पहाड़ी रास्तों पर और 300 किलोमीटर साइकिल कैसे चला सकता था? इस बीच मैं पहाड़ों पर और तीन सौ किलोमीटर साइकिल कैसे चला सकता था? लेकिन ठीक होने के बाद मैंने फिर से शुरुआत की। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पेट की समस्या ही मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।

क्या आपने अपनी यात्रा के दौरान कुछ भी असामान्य या अलौकिक देखा?

नहीं, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा।

भविष्य में साइकिलिस्ट बनने की इच्छा रखने वाले लोगों को क्या संदेश देंगे?

लंबी दूरी के साइकिलिस्ट के लिए कई लंबे रूट्स हैं जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से किबिथु और देशभर के दूसरे लंबे टूर, गोल्डन क्वाड्रिलेटरल - लोग इन चुनौतियों में हिस्सा लेते हैं। मैंने लेह से किबिथु का रूट पकड़ा था। इस सफर में ही हिमालय का बहुत सारा हिस्सा पड़ता है। मुझे कई ऊंचे दर्रे पार करने पड़े। सिर्फ लंबी दूरी तक साइकिल चलाना ही नहीं, बल्कि ऊंचे पहाड़ों पर जिंदा रहना भी एक बड़ी चुनौती है।

कोई भी खतरा आता है तो उससे खुद ही निपटना पड़ता है और इसे हमेशा याद रखना होगा। जो लोग एंड्योरेंस साइकिलिस्ट बनना चाहते हैं, उन्हें सिर्फ साइकिल चलाना ही नहीं बल्कि स्पीड को सुधारने के लिए भी अभ्यास करें। इसके साथ ही लंबी दूरी तय करने का अभ्यास भी उन्हें करना चाहिए। कुछ और कौशल उन्हें सीखनी होगी जिसमें दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर कैसे जिंदा रहें, मुसीबतों से कैसे निपटे आदि। यह रोमांच और साइकिलिंग का एक शानदार मिश्रण है। इसलिए अगर कोई खुद को इस तरह से तैयार कर ले तो लंबी दूरी तक साइकिल चलाना भी मुमकिन हो जाएगा।

बता दें, अभिषेक तुंगा मेघनाद साहा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सहायक प्रोफेसर हैं। वह जादवपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र हैं। रोमांच पसंद करने वाले लोगों के बीच उन्होंने एक मिसाल कायम की है।

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