नई दिल्ली: कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम 1980-81 की मतदाता सूची में गलत तरीके से शामिल किए जाने की शिकायत सितंबर में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा खारिज कर दी गयी थी। अब शिकायतकर्ता ने फैसले को चुनौती देते हुए सेशन जज के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की है। यह शिकायत अधिवक्ता विकास त्रिपाठी द्वारा दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोनिया गांधी का नाम 1980–81 की मतदाता सूची में शामिल था। यह नाम उस समय सूची में था जबकि सोनिया गांधी 1983 से पहले भारतीय नागरिक नहीं थीं। शिकायत में कथित जालसाज़ी और धोखाधड़ी के आधार पर FIR दर्ज करने की मांग की गई थी, जिसके लिए भारतीय दंड संहिता, BNS और RPA के प्रावधानों का हवाला दिया गया था। मजिस्ट्रेट अदालत ने इस शिकायत को शुरुआती चरण में ही यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इस याचिका पर 9 दिसम्बर को सुनवाई निर्धारित है। वह मामला दोबारा खुल रहा है, जिसे पहले प्रारम्भिक स्तर पर ही खारिज कर दिया गया था। सितंबर के अपने आदेश में राउज़ एवेन्यू अदालत ने कहा था कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के विरुद्ध दर्ज आपराधिक शिकायत विधिक रूप से अस्थिर, सामग्री में कमी वाली और अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने टिप्पणी की थी कि सूचना देने वाले ने इस अदालत को ऐसा अधिकार क्षेत्र ग्रहण करने हेतु प्रेरित करने का प्रयास किया है, जो विधि में इसे प्राप्त नहीं है।याचिका पूरी तरह 1980 की मतदाता सूचियों की अप्रमाणित फोटोकॉपी पर आधारित थी और इसे 'कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग व नागरिक या सामान्य विवाद को अपराध का रूप देकर अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना' बताया।
आदेश में कहा गया कि सिर्फ खोखले आरोप, जिनमें धोखाधड़ी या जालसाजी के कानूनी तत्वों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक विशिष्ट विवरण न हों, एक विधिसम्मत आरोप का स्थान नहीं ले सकते। ACJM चौरसिया ने जोर देकर कहा कि नागरिकता से जुड़े प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 11 तथा नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत विशुद्ध रूप से केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसके विपरीत, मतदाता सूचियों से संबंधित निर्णय केवल भारत निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में हैं, जिनका निर्धारण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 के तहत होता है। अदालत ने कहा कि किसी भी आपराधिक अदालत द्वारा ऐसे मामलों में दखल संविधान द्वारा सुरक्षित क्षेत्र में अवांछित अतिक्रमण होगा और अनुच्छेद 329 का उल्लंघन करेगा। जब संविधान ने चुनाव और नागरिकता से संबंधित लोकतांत्रिक कार्यों का क्षेत्र विशेष रूप से निर्वाचन आयोग और केन्द्र सरकार को सौंपा है तो सूचना देने वाला व्यक्ति निजी शिकायत के माध्यम से इस क्षेत्र में दखल नहीं दे सकता। जो सीधे नहीं किया जा सकता, उसे परोक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता।