मेदिनीपुर, 13 सितंबर : सुबह-सुबह नींद से उठकर नमिता जल्दी से रसोई में घुस गईं। फिर जल्दी से घर के काम निपटाकर किसी तरह नहा-धोकर पूजा के कार्यों में जुट गईं। नमिता के साथ गांव की अन्य महिलाएं भी काम में हाथ बंटा रही हैं। किसी और की तरफ देखने की भी जैसे उन्हें फुरसत नहीं है। क्यों? क्यों नहीं!
इस बार गांव की पूजा की आयोजक तो वे ही हैं! इसलिए, शहीद मातंगिनी ब्लॉक के धुर्पा गांव में पूजा की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं।
चंदे का हिसाब-किताब करते हुए नमिता और उसकी साथी बता रहे हैं, 'इसकी शुरुआत वर्ष 2023 में हुई थी। उससे पहले गांव में दुर्गा पूजा ही नहीं होती थी। आसपास के गांवों में जब दुर्गा पूजा के दिनों में सब हुल्लड़ मचाते रहते थे, तब हमारा गांव अंधेरे में डूबा रहता था। अष्टमी की पुष्पांअंजलि देने बहुत दूर जाना पड़ता था। घर में बैठे-बैठे दुर्गा पूजा के कुछ दिन जैसे बीतते ही नहीं थे।'
गांव की एक अन्य लड़की पिंकी बताती है कि दो साल पहले गांव में दुर्गापूजा करने का विचार आया था। महिलाएं ही इसमें आगे आई थीं। गांव की 70-80 महिलाओं ने जब दुर्गा पूजा शुरू की, तब उनका एकमात्र सहारा लक्ष्मी भंडार से मिलने वाले रुपया ही थे।
गांव की महिलाएं बताती हैं कि लक्ष्मी भंडार के रुपए से ही गांव में पहली दुर्गा पूजा का ढाक बजा था। घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा करके दुर्गा पूजा का बाकी खर्च जुटाया गया। पूजा समिति की सचिव शंपा जाना कहती हैं, 'पहले सोचती थी, हमारे गांव में शायद कभी मां दुर्गा के पैर नहीं पड़ेंगे। तब बहुत दुख होता था।
अब हम खुद ही पूजा का आयोजन कर रहे हैं।' यह तीसरा साल है धूपा गांव की दुर्गापूजा का। पहले की तुलना में चंदे की राशि भी बढ़ी है। अब कई लोग अपनी इच्छा से आगे आकर मदद करते हैं। दुर्गा पूजा के चार दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी चलते हैं।
गांव के एक बुजुर्ग बंशीवदन घोष कहते हैं, 'कभी नहीं सोचा था, जीते-जी इस गांव में दुर्गापूजा देख पाऊंगा! वह आशा पूरी होने से हम खुश हैं। महिलाओं के इस प्रयास की सराहना करता हूं।' कुछ ही दिनों में दुर्गा पूजा शुरू हो रही है। अब गांव की महिलाओं के पास नहाने-खाने का भी समय नहीं है। दुर्गा पूजा का पंडाल सज रहा है। पूरा गांव सज रहा है। क्योंकि दुर्गा पूजा में अब बस कुछ ही दिनों का समय शेष है...।