पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि के आखिरी दिन यानी दशहरा ही वह दिन होता है जब भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था। इसके बाद से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर हर साल रावण (Ravan Dahan), उसके बेटे मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतलाओं को जलाया जाता है। नवरात्रि के समय कहीं रामलीला का मंचन किया जाता है तो कहीं मेला लगता है जहां रावण के पुतले का दहन होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं, हमारे देश में ऐसे कई शहर हैं जहां रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। इन शहरों में रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है, मंदिरों में रावण की पूजा की जाती है।
आइए आपको ऐसे कुछ शहरों के बारे में बताते हैं -
विदिशा, मध्य प्रदेश - मध्य प्रदेश का यह शहर भी रावण की पत्नी को अपनी बेटी मानता है। यहां दशहरा वाले दिन रावण की लगभग 10 फीट ऊंची प्रतिमा की पूजा की जाती है।
मंदसौर, मध्य प्रदेश - मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि दशानन की पत्नी मंदोदरी का मायका मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर में था। इस लिहाज से रावण को यहां का जमाई माना जाता है। जमाई का पुतला न जलाकर मंदसौर निवासी रावण की पूजा करते हैं। चुंकि रावण मंदसौर का जमाता था, इसलिए रावण की पूजा करते समय यहां की महिलाएं घूंघट करना नहीं भूलती हैं।
कोलार, कर्नाटक - दक्षिण भारतीय इस शहर में रावण का मंदिर बनाया गया है। कहा जाता है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और वह एक महापंडित भी था। रावण के इन्हीं गुणों का मान रखते हुए कोलार में रावण दहन के बजाए उसकी पूजा की जाती है।
कानपुर, उत्तर प्रदेश - विजयादशमी के दिन कानपुर के दशानन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। बताया जाता है कि इस दिन रावण की प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है, जिसके बाद उसकी पूजा का प्रावधान है। कहा जाता है कि इस दिन अगर कोई व्यक्ति मंदिर में सच्चे दिल से तेल के दिए जलाता है तो उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी।