सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के लिए फांसी की जगह घातक इंजेक्शन जैसे मानवीय तरीकों को अपनाने पर सरकार के विरोध पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए कैदियों के लिए फांसी की जगह घातक इंजेक्शन जैसे तरीकों को अपनाने पर सरकार के विरोध पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है। यह मामला एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें फांसी की सजा को घातक इंजेक्शन या अन्य तरीकों से बदलने की मांग की गई थी। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि वह इस विकल्प को क्यों नहीं दे सकती।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, जहां एक याचिकाकर्ता ने मांग की है कि मौत की सजा देने के तरीके को बदला जाए। याचिकाकर्ता चाहता है कि फांसी की जगह घातक इंजेक्शन, फायरिंग स्क्वाड, बिजली की कुर्सी या गैस चैंबर जैसे तरीकों को अपनाया जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि इन तरीकों से मौत कुछ ही मिनटों में हो जाती है, जबकि फांसी में काफी समय लग सकता है और यह क्रूर और दर्दनाक हो सकती है।
याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कोर्ट में कहा, 'कम से कम दोषी कैदी को यह विकल्प तो दिया जाए कि वे फांसी चाहते हैं या घातक इंजेक्शन, घातक इंजेक्शन मानवीय और सभ्य है, जबकि फांसी क्रूर, बर्बर और लंबी चलने वाली है।' उन्होंने यह भी बताया कि सेना में ऐसे विकल्प दिए जाते हैं। हालांकि, सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि ऐसा विकल्प देना 'संभव नहीं है'।
सरकार पक्ष का कहना है कि यह नीतिगत मामला है और इसमें कई फैसले लेने होंगे। वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर, जो सरकार की ओर से पेश हुईं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि कैदियों को विकल्प देना नीतिगत निर्णय का हिस्सा है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सरकार के इस रवैये पर मौखिक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि सरकार 'समय के साथ हो रहे बदलावों के साथ विकसित होने के लिए तैयार नहीं है।' बेंच ने कहा, 'समस्या यह है कि सरकार विकसित होने के लिए तैयार नहीं है। यह एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है (फांसी का जिक्र करते हुए) समय के साथ चीजें बदल गई हैं।
अगली सुनवाई 11 नवम्बर को
कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 11 नवंबर तक के लिए टाल दी है। यह मामला मौत की सजा के तरीके और कैदियों के अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाता है। कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि वह मानवीय और आधुनिक तरीकों को अपनाने के पक्ष में है, जबकि सरकार अभी भी पुरानी प्रक्रियाओं पर अटकी हुई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि 11 नवंबर को सुनवाई के दौरान क्या होता है और सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है।