22 वर्षीय बीटेक स्नातक, शहर छोड़कर लौटीं बदलने गाँव की तस्वीर

यही ‘जेन ज़ी’ युवती अब देश की सबसे कम उम्र की ग्राम प्रधान बन गई हैं।

By अमर्त्य लाहिड़ी, Posted by: प्रियंका कानू

Nov 27, 2025 13:58 IST

देहरादूनः उम्र केवल 22 वर्ष-कहा जा सकता है कि यह युवती अपने दौर की सच्ची नेता है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कुई गाँव को मिली है देश की सबसे कम उम्र की ग्राम प्रधान। शहर में आकर्षक नौकरी के अवसर छोड़कर बीटेक स्नातक साक्षी रावत ने अपने जन्मस्थान लौटकर काम करने का निर्णय लिया था। ‘जेन ज़ी’ की इस बेटी का सपना अब पूरा हो चुका है और उनके गाँव, कुई के लिए भी एक नए भविष्य के दरवाज़े खुल गए हैं।

पौड़ी शहर में अपने कॉलेज असाइनमेंट के दौरान साक्षी को वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ घुलने-मिलने का अवसर मिला था। जिस परियोजना पर वह काम कर रही थीं, उसके लिए उन्हें वहाँ के निवासियों से बात करनी पड़ती थी, उनके दैनिक जीवन की समस्याओं और चिंताओं को समझना होता था। यह अनुभव उनके मन में गहराई से बस गया। उन्हें महसूस हुआ कि अपने गाँव कुई में भी इसी तरह का काम किया जा सकता है। इसी कारण जैव-प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) में स्नातक होने के बाद भी उन्होंने शहर में नौकरी की तलाश नहीं की। साक्षी अपने घर, अपने गाँव कुई लौट आईं। उन्होंने तय किया कि गाँव में कुछ बड़ा और उल्लेखनीय बदलाव लाने की कोशिश करेंगी। इसी उद्देश्य से उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया।

साक्षी ने बताया कि चुनाव में खड़े होने के लिए उनके परिवार ने ही उन्हें सबसे ज़्यादा प्रोत्साहित किया। सबसे बड़ा समर्थन उन्हें अपने पिता से मिला। उसके बाद पूरा गाँव उनके साथ खड़ा हो गया। यही समर्थन उनके जीवन का बड़ा मोड़ बन गया। तीन महीने पहले साक्षी ने ग्राम प्रधान का पद संभाला है और इस थोड़े से समय में ही उन्होंने गाँव के विकास पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। वह इसे कैसे आगे बढ़ाना चाहती हैं?

जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) की छात्रा साक्षी का पहला लक्ष्य गाँव की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है। विशेष रूप से, विदेशी फल और फूलों की खेती को बढ़ावा देकर वह गाँव के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना चाहती हैं, ताकि गाँव का मानव संसाधन शहरों की ओर न बह जाए।

साक्षी का एजेंडा बेहद स्पष्ट है—

• बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा

• युवाओं के लिए उन्नत प्रशिक्षण

• डिजिटल सेवाओं की आसान उपलब्धता

• सड़क और अन्य आधारभूत संरचनाओं का विकास

• और गाँव के हर छोटे-बड़े निर्णय में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना।

साक्षी के ये सारे सपने कितने सफल होगे, यह समय बताएगा। लेकिन फिलहाल, उनकी कहानी ग्रामीण भारत की नई पीढ़ी को प्रेरित कर रही है। उन्होंने साबित कर दिया है कि जिम्मेदारी उठाने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती—बल्कि नई कौशल और व्यवहारिक ज्ञान का उपयोग करके अपने ही गाँव में सार्थक बदलाव लाया जा सकता है।

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