यूनिवर्सिटी गेम्स में विदेशी खिलाड़ियों का दबदबा, भारत की बास्केटबॉल टीम में चीमा-एमेकारा

चार दशक के बाद यूनिवर्सिटी गेम्स की बास्केटबॉल में फिर से विदेशी खिलाड़ी

By पार्थ दत्ता, Posted by: लखन भारती

Dec 08, 2025 17:51 IST

अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ने आए मज़ीद बिसकर, जमशिद नासिरी, एम्को एजुगेआ, चीमा ओकोरी जैसे विदेशी भारत के क्लब फुटबॉल के सुपरस्टार बन गए थे।

लगभग चार दशकों बाद यूनिवर्सिटी गेम्स के बास्केटबॉल में फिर विदेशी खिलाड़ी दिखाई दिए। जयपुर में हाल ही में संपन्न खेले इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के बास्केटबॉल में कई विदेशी खिलाड़ियों को देखा गया। जो पढ़ाई के साथ-साथ बास्केटबॉल में भी धमाल मचा रहे थे। भले ही बंगाल में बास्केटबॉल ज्यादा लोकप्रिय न हो, लेकिन बेंगलुरु, चेन्नई, चंडीगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र के मोहल्लों में अब बास्केटबॉल का आयोजन हो रहा है और इस लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए बेंगलुरु की जैन और क्राइस्ट यूनिवर्सिटी विदेशी छात्रों के साथ टीम बना रही हैं और ये टीमें इतनी मजबूत हैं कि वे गेम्स के पुरुषों के बास्केटबॉल फाइनल में भी खेलीं। जैन ने क्राइस्ट को 96-59 से हराया।

दो अफ़्रीकी पीटर रिक और पीटर सैमुअल ने दो टीमों में ध्यान खींचा । 6 फीट 9 इंच लंबे और अच्छे कद-काठी वाले रिक दक्षिण सूडान से हैं। जैन यूनिवर्सिटी में वह कंप्यूटर एप्लीकेशन पढ़ते हैं। लगभग खड़े खड़े ही 22 साल के इस खिलाड़ी ने गेंद को बास्केट में डालते हैं और क्राइस्ट की 6 फीट 6 इंच लंबे सैमुअल की उम्र अभी सिर्फ 19 साल है। वह नाइजीरिया के अबुजा शहर के रहने वाले हैं। वह सेंटर में खेलते हैं। टीम के लिए असाधारण मेहनत करते हैं।

हालांकि, रिक को अपनी पढ़ाई के बाद भारत में रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है। एक पेशेवर बास्केटबॉलर के रूप में, वह यूरोप के एक क्लब में जगह बनाना चाहता है। रिक ने कहा, "भारत में क्रिकेट हर जगह है ! मुझे नहीं पता कि बास्केटबॉल यहां पेशेवर होगा या नहीं। मुझे अन्य देशों के क्लबों से प्रस्ताव मिले हैं। इसलिए मैं अब यहां नहीं रहूंगा। उन्होंने कहा, 'जैन विश्वविद्यालय ने मुझे बहुत कुछ दिया है। इसलिए मैंने उन्हें खेलों से स्वर्ण पदक दिया।

सैम्युएल निश्चित रूप से भारत में ही रहना चाहते हैं। स्टीफन करी के प्रशंसक कह रहे थे, 'हमारे चार भाई-बहनों वाले परिवार में आर्थिक समस्याएँ हैं। पिता केवल एक मामूली गार्ड की नौकरी करते हैं। क्राइस्ट यूनिवर्सिटी मुझे बिना खर्च पढ़ाई करने के साथ-साथ स्टाइपेंड भी देती है। खेल में जीतने पर आर्थिक पुरस्कार भी देती है। इसलिए मैं यहाँ से पढ़ाई पूरी करने के बाद यहीं के किसी पेशेवर क्लब में खेलना चाहता हूँ।' जोर से जोड़ते हैं, 'सब कुछ ठीक रहा तो मैं भारत की नागरिकता लेकर इसी देश की जर्सी में खेलने की भी योजना बना रहा हूँ।' फुटबॉल के बाद भारत के बास्केटबॉल में भी एक चमक पैदा होने वाली है ?

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