डीवाई पाटिल स्टेडियम में खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने डिफेंडिंग चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर इतिहास रच दिया। इस जीत की नायिका बनीं जेमिमा रोड्रिग्स, जिन्होंने नाबाद शतकीय पारी खेलते हुए भारत को तीसरी बार वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचाया। उनकी इस शानदार पारी के लिए उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया।
गुरुवार रात अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने के बाद जेमिमा रोड्रिग्स के आंसुओं को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित करना असंभव है। ये आंसू दरअसल अंतहीन दबाव पर काबू पाने और खुद को अनंत की ओर धकेलने का प्रतिबिंब हैं। कई सालों की असफलता और हार की शर्मिंदगी को मिटाने और विश्व कप सेमीफाइनल जैसे मंच पर विश्व चैंपियन को हराने का सार्वजनिक इजहार। मैच के बाद अपने साथियों को गले लगाते हुए, अपने पिता के कंधे पर सिर रखते हुए या बाद में मीडिया का सामना करते हुए 25 वर्षीय जेमिमा अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई थी।
उस रोने में दूसरी साधारण लड़कियों के संघर्ष की कहानी भी शामिल थी। टीम में सबसे मजेदार लड़की क्रिकेट खेलने केअलावा गिटार भी बजाती है। गाती भी है और ड्रेसिंग रूम में बॉलीवुड के हिट गानों पर नाचती भी है। ये सब सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करती है। वो कभी-कभार कटर रोड पर अपनी सहेलियों के साथ पाव भाजी या शावरमा खाने जाती है। इतना ही नहीं। पिछले साल ही धर्म के नाम पर मुंबई के पारंपरिक क्लब खार जिमखाना की उसकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी। कथित तौर पर, ये आरोप लगे थे कि उसके पिता इवान रोड्रिग्स क्लब परिसर का इस्तेमाल धार्मिक प्रचार के लिए कर रहे थे। उसके बाद उसे ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा।
पहली बार वनडे विश्व कप खेलते हुए उसने पहले तीन मैचों में दो रन बनाए। टीम से बाहर कर दी गयी और फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में नाबाद 76 रन बनाकर टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। सेमीफाइनल में भी क्रीज़ पर जाने से पांच मिनट पहले उसे पता चला कि तीसरे नंबर पर उसे बल्लेबाजी करना है। वह पारी के दूसरे ओवर में ही मैदान पर उतर आई और पूरी पारी में नाबाद 127 रनों की अविश्वसनीय पारी खेल कर इतिहास रच दी।
रातों-रात पूरे देश की आंखों का तारा बन गयी। इधर मैच के बाद जेमिमा ने अपने भावनात्मक बयान में कहा, “इस दौरे पर मैं लगभग हर दिन रोई हूं। मैं मानसिक रूप से ठीक नहीं थी, चिंता से जूझ रही थी। लेकिन मुझे पता था कि मुझे मैदान पर उतरना ही होगा और भगवान ने सब संभाल लिया। शुरू में मैं बस खेल रही थी और खुद से बातें कर रही थी। अंत में, मैं बाइबल की एक आयत दोहराती रही — ‘स्थिर रहो और भगवान तुम्हारे लिए लड़ेंगे।’ मैं वहीं खड़ी रही, और उन्होंने मेरे लिए लड़ाई लड़ी।”
मैच जीत कर भी जेमिमा फूट फूट कर रोई थीं। उनके इस रोने के पीछे उनका संघर्ष तो था ही जिसकी बदौलत उन्होंने इतिहास रच दिया। आम तौर पर इतने बड़े मंच पर लोग संयत होते हैं। संयमित रहते हैं और नपा तुला बयान देते हैं लेकिन जेमिमा एकदम से टूट कर रो रही थीं मानो उनके जज्बात उनके नियंत्रण में नहीं थे। सच तो यही है कि इस तरह से सार्वजनिक तौर पर सबके सामने रोना आसान नहीं होता है।
लोग सार्वजनिक रूप से कब रोते हैं? दुख, पीड़ा और तकलीफ में। किसी प्रियजन को खोने के दर्द में या किसी बड़ी असफलता में। ऐसे किसी खास पल में जब मन के अंदर एक अद्भुत सुनामी उठती है। जब सारे बांध टूट जाते हैं। कभी कभी लोग खुशी में भी रोते हैं। जब वे सार्वजनिक रूप से अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देते हैं। अमेरिका के मिनेसोटा के वैज्ञानिक डॉ. विलियम फ्रे कहते हैं, 'रोना दरअसल एक उत्सर्जन प्रक्रिया है। एक बहिःस्रावी प्रक्रिया जो शरीर से विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है जो मुख्य रूप से तनाव से उत्पन्न होते हैं।'
भारत इससे पहले दो बार (2005 और 2017) फाइनल में पहुंच चुका है लेकिन ट्रॉफी से दूर रहा है। 339 रनों का पीछा करते हुए रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करने के बाद ट्रॉफी बस अब एक कदम दूर है। ग्रुप लीग में उन्हें दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक करीबी मैच हारना पड़ा था लेकिन रविवार का मुकाबला अलग होगा। 2017 में जब मिताली राज की टीम लॉर्ड्स में फाइनल हारने के बाद मुंबई एयरपोर्ट पर उतरी तो सुबह-सुबह एक साढ़े सोलह साल की लड़की भारतीय तिरंगा लेकर टीम का स्वागत करने के लिए भीड़ में खड़ी थी।
वही लड़की कल टीम इंडिया की नीली जर्सी पहनकर मैदान में उतरेगी। वह तीसरे नंबर पर क्रीज पर उतरेगी। जेमिमा की खिली हुई मुस्कान के पीछे पूरे देश का विश्वास, प्रार्थना और प्यार होगा-इतने करीब पहुंचने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा जा सकता।