उत्तर बंगाल में अप्रत्याशित बारिश की वजह से भयंकर तबाही मच गयी है। पिछले24 घंटों में 100 मिलीमीटर तक बारिश होने का अनुमान था लेकिन शनिवार दोपहर तक यह सीमा पार हो गई। इसकी वजह से उत्तर बंगाल में जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, कलिम्पोंग और कूचबिहार—बंगालियों के घूमने की सबसे पसंदीदा जगहें—कुछ घंटों की मूसलाधार बारिश से तबाह हो गई हैं।
भूवैज्ञानिकों की टीम को शनिवार दोपहर से ही अति वृष्टि की आशंका थी। इधर मौसम विभाग द्वारा उत्तर बंगाल में 'रेड अलर्ट' घोषित करने के बाद ही उन्हें एहसास हुआ कि अब और कुछ नहीं किया जा सकता है। सब कुछ हाथ से निकल चुका था। इसकी वजह ये कि दार्जिलिंग-सिक्किम क्षेत्र की मिट्टी की प्रकृति के कारण 24 घंटे में 100 मिलीमीटर की बारिश को 'थ्रेशहोल्ड वैल्यू' या सहनशीलता का स्तर माना जाता है।
इससे ज्यादा बारिश होने पर अनियंत्रित भूस्खलन होता है और बाढ़ आ जाती है। पिछले कुछ दशकों में प्रकृति की अनदेखी कर जिस तरह से तीस्ता नदी तल पर अवैध निर्माण किया गया और सेवक-रोंगपो रोड पर लगातार रेलवे सुरंगें बनायी जा रही हैं, विभिन्न नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं का काम चलाया जा रहा है, प्रकृति अब उसी का बदला ले रही है। मौका मिलते ही प्रकृति ने पलटवार किया है। इसके अलावा दार्जिलिंग-सिक्किम की कमजोरभू-प्रकृति ही इस मामले में प्रकृति का हथियार है।
भूवैज्ञानिकों का कहना है कि सिक्किम की जीवनरेखा एनएच-10 है और दार्जिलिंग की जीवनरेखा एनएच-10, हिलकार्ट रोड और दुधिया-मिरिक रोड है। अप्रैल और मई के बाद से ही दार्जिलिंग और सिक्किम में कम समय में कई बार अत्यधिक बारिश हुई है।
पिछले शुक्रवार को बिहार और नेपाल के ऊपर एक मजबूत निम्न दबाव का क्षेत्र बना। इसके चलते शनिवार से उत्तर बंगाल के विभिन्न हिस्सों में लगातार बारिश शुरू हो गई। 24 घंटों में दार्जिलिंग में 261 मिमी, कूचबिहार में 190 मिमी और जलपाईगुड़ी में 172 मिमी बारिश हुई। इस बारिश की वजह से ही उत्तर बंगाल में भयंकर तबाही मची है।
इस संदर्भ में हिमालयी भूस्खलन विशेषज्ञ और सिद्धो कान्हो-बिरसा विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर बिस्वजीत बेरा ने 'एई समय' को बताया कि अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि एनएच-10, हिलकार्ट रोड, रोहिणी रोड, मिरिक-दुधिया रोड और कलिम्पोंग रोड बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि एनएच-10 पर अक्सर दो तरह की चट्टानोंका गठन होते देखा गया है। इनमें से एक है 'डालिंग समूह' और दूसरी है 'दामुदा श्रृंखला'। इन दो प्रकार की चट्टानी संरचनाओं में से डालिंग समूह स्लेट, फिलाइट और शिस्ट जैसी चट्टानों पर बना है। दूसरी ओर दामुदा श्रृंखला कोयला, बलुआ पत्थर, मडस्टोन और शेल पर आधारित है। इसके अलावा इस क्षेत्र में कई थ्रस्ट लाइनें या फॉल्ट लाइनें हैं।"
इसके अलावा भूगर्भीय कारणों से दो चट्टानी परतें एक-दूसरे के ऊपर क्षैतिज रूप से उठती हैं जिससे फॉल्ट लाइनें बनती हैं। दार्जिलिंग और सिक्किम क्षेत्रों में 'मेन बाउंड्री थ्रस्ट', 'हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट', 'मेन सेंट्रल थ्रस्ट' जैसी थ्रस्ट लाइनें हैं। विश्वजीत ने कहा कि ये सभी फॉल्ट लाइनें संरचनात्मक रूप से बेहद कमजोर और भंगुर हैं। यह पूरा इलाका जिस तरह की चट्टानों से बना है अत्यधिक बारिश होने पर कीचड़ का बहाव होता है और इसके दुष्प्रभाव के रूप में पहाड़ों से भूस्खलन होने लगता है। शनिवार की बारिश के बाद यही हुआ।
वहीं भूवैज्ञानिकों का कहना है कि दार्जिलिंग और सिक्किम की कठोर चट्टानें वर्षों से अपक्षय के कारण लगातार मिट्टी में बदल रही हैं। हालांकि उस क्षेत्र में ज्यादातर जगहों पर मिट्टी की परत की गहराई 10-12 फीट तक है। इसलिए ज्यादा बारिश होने पर मिट्टी ढीली हो जाती है।
इस बारे में मौसम विज्ञानी रवींद्र गोयनका ने कहा कि बिहार और नेपाल पर बने निम्न दबाव के अत्यधिक सक्रिय होने के कारण उत्तर बंगाल के आसमान में भारी मात्रा में जलवाष्प प्रवेश कर रही थी। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत पर एक चक्रवात भी बना हुआ है। उस क्षेत्र में फंसी जलवाष्प हिमालय की वजह से फैल नहीं पाई। हिमालय एक दीवार की तरह खड़ा था। इसीलिए इतनी बारिश हुई।
हालांकि पर्यावरणविदों ने इतनी अधिक तबाही के लिए प्रशासन को ही जिम्मेदार ठहराया है। उनका आरोप है कि एक के बाद एक गलतफैसलों के कारण पूरे इलाके की यह हालत हुई है। इनमें सेवक-रोंगपो सड़क परलगातार रेलवे सुरंग का निर्माण, तीस्ता और अन्य नदियों के किनारों पर अनगिनत घरों, होमस्टे और रिसॉर्ट्स का निर्माण शामिल है।
कई जलविद्युत परियोजनाएं भी बनाई गई हैं। नतीजतन नदी का प्रवाह काफी कम हो गया है। इसके अलावा उत्तर बंगाल में साल भर 'पर्यटन सीजन' चलता है। इसलिए साल भर इस इलाके में भारी वाहन चलते रहते हैं। इसकी वजह से मिट्टी की पकड़कमजोर होती गयी है। उसी कमजोर भूप्रकृति पर ही इस भयावह बारिश के कारण इतनी तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है।