कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गुरुवार को ढाई साल पूरे कर लिए। उसी दिन राज्य के कांग्रेस विधायकों का एक ग्रुप दिल्ली पहुंचा। जो डिप्टी चीफ मिनिस्टर और प्रदेश कांग्रेस प्रेसिडेंट डीके शिवकुमार के करीबी माने जाते हैं। क्या ढाई साल बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री का चेहरा सच में बदल जाएगा? क्या 'नवंबर क्रांति' होगी, क्या सिद्धारमैया की जगह डीके शिवकुमार राज्य के नए मुख्यमंत्री बनेंगे?
शिवकुमार के करीबी विधायकों के दिल्ली दौरे से इन अटकलों को और हवा मिली है। कांग्रेस नेतृत्व ने कभी भी सार्वजनिक रूप से यह नहीं माना है कि ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बदलने के लिए कोई गुप्त समझौता हुआ था। हालांकि, अटकलों के मुताबिक, इस समय सिद्धारमैया के इस्तीफा देने और शिवकुमार को CM की कुर्सी सौंपने की उम्मीद है।
दिल्ली गए कर्नाटक कांग्रेस के MLA में शिवकुमार के वोक्कालिगा समुदाय के कई असरदार सदस्य भी हैं जिसे खास अहमियत दी जा रही है। इस ग्रुप में रामनगर के MLA इकबाल हुसैन भी शामिल हैं। इससे पहले उन्होंने कहा था कि कम से कम 100 कांग्रेस MLA शिवकुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर सपोर्ट करते हैं।
MLAs का दावा है कि वे 'बिज़नेस' के लिए दिल्ली आए हैं। हालांकि, इससे अटकलें खत्म नहीं होतीं। एक दिन पहले, शिवकुमार ने प्रदेश कांग्रेस प्रेसिडेंट का पद छोड़ने का इशारा करते हुए कहा था कि वह 'हमेशा इस पद पर नहीं रह सकते'। राजनीतिक हलकों में इसे सिद्धारमैया के लिए एक मैसेज माना जा रहा है।
शिवकुमार के भाई डीके सुरेश ने फिर कमेंट किया है, 'अगर किस्मत अच्छी रही तो मेरा भाई मुख्यमंत्री बनेगा।' इन सभी कमेंट्स ने अटकलों को और हवा दे दी है।
हालांकि, सिद्धारमैया ने इन अटकलों को मीडिया की बनाई बात बताकर खारिज कर दिया है। उनका दावा है कि वे पांच साल का टर्म पूरा करेंगे। लेकिन दिल्ली में MLA की मौजूदगी और DKS के स्टेट प्रेसिडेंट पद से हटने के इशारे ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। कांग्रेस को अब दक्षिण भारतीय राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए इस अंदरूनी लड़ाई से निपटना होगा। BJP इंतज़ार में है।