अरिंदम बंद्योपाध्याय व प्रीतम प्रतीक बसु
नयी दिल्लीः क्या कश्मीर की ओर इस्लामिक स्टेट (आईएस) कदम बढ़ा रहा है? और इसी क्रम में फिदायीन जिहादी ऑपरेशन की दिशा बदलकर घाटी में घुसपैठ करने की नई योजना बना रहे हैं? ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भी पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की भारत-विरोधी गतिविधियां बंद नहीं हुईं। यह खबर केंद्रीय जासूसों को पहले ही मिल चुकी है। नियंत्रण रेखा या लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) से और भी अंदर आतंकवादी कैंप और लॉन्चपैड (जहां से आतंकियों को सीमा की ओर भेजा जाता है) हटाने की प्रक्रिया से लेकर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय का पुनर्निर्माण पिछले महीने तक हो रहा था। इसमें पाक सेना और खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की पूरी मदद कोई छिपी हुई बात नहीं है।
लेकिन खुफिया अधिकारियों के पास जो नवीनतम सबूत आया है (तस्वीरें और वीडियो), उसमें स्पष्ट है कि आतंकवादी भारत में प्रवेश करने के लिए नए मार्ग की कोशिश कर रहे हैं। सीमा के उस पार पाकिस्तान के नियंत्रित वाले कश्मीर (पीओके) में हाल ही में आतंकवादियों की सक्रियता बढ़ी है। कम से कम 8 फिदायीन टीमों ने पीओके में अपने ठिकाने बना लिए हैं। वह तस्वीरें भी खुफिया अधिकारियों के हाथ लगी हैं। उनका अनुमान है कि आतंकवादी अब और अधिक बर्फ पड़ने का इंतजार कर रहे हैं। उस मौके का फायदा उठाकर वे सीमा पार करके कश्मीर में प्रवेश करना चाहते हैं। खुफिया अधिकारियों को पहले ही सबूत मिल चुके हैं कि आईएसआई की देखरेख में आतंकवादी आईएस के साथ गठबंधन और मजबूत कर चुके हैं और लश्कर ने भी इसमें भागीदारी की है। उनका एक निशाना पाकिस्तान के लिए परेशानी का कारण बन चुका तहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है।
लेकिन और बड़ा निशाना कश्मीर है। खुफिया एजेंसियों को पता चला है कि कश्मीर में अपनी मौजूदगी साबित करने के लिए आईएस और अधिक उत्सुक हो गया है। जो 8 फिदायीन टीमें इस समय पीओके में सक्रिय हैं, उनमें लश्कर के साथ आईएस के प्रशिक्षित आतंकवादी भी शामिल हैं। पिछले दो महीने में आतंकवादियों ने बार-बार सीमा पार करने की कोशिश की। हर बार उन्हें बीएसएफ ने रोक दिया। यह आतंकवादियों को भलीभांति पता है कि इस समय सीमा पार करना इतना आसान नहीं होगा। सेना को खुफिया एजेंसियों से वही जानकारी मिली है कि इस साल सर्दियों में जब बर्फबारी चरम पर होगी, तब फिर से घुसपैठ की कोशिश होगी। दिन-रात निगरानी में एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मोबाइल जैमर, इंटरसेप्टर के अलावा इंफ्रा रेड और रिमोट सेंसर का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। सेना के पश्चिम क्षेत्र के जिम्मेदार लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार काटियार ने कहा, 'अगर पाकिस्तान द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकवादी घुसपैठ करने की कोशिश करेंगे तो उन्हें उपयुक्त जवाब मिलेगा और यह भयावह होगा। एक बात साफ कर कहना चाहता हूं कि अगर स्थिति ऐसी हुई तो ऑपरेशन सिंदूर-2 अनिवार्य हो जाएगा और निःसंदेह यह और भी भयावह होगा। इसकी कीमत क्या चुकानी होगी इसका पाकिस्तान अंदाजा भी नहीं लगा सकता।'
खुफिया एजेंसियों का कहना है, 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद आतंकियों ने अपनी रणनीति बदल ली है। 'सिंदूर' के झटके से मुज़फ़फराबाद, अबटाबाद जैसे लंबे समय के प्रशिक्षण कैंप और लॉन्चपैड छोड़ने पर मजबूर हुए। इस समय वे पुंछ से राजौरी तक की सीमा क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं। कश्मीर में इन दोनों जगहों के बीच की दूरी लगभग 86 किलोमीटर है। उत्तर की दिशा में मुज़फ़फराबाद, अबटाबाद छोड़कर आतंकवादी अब और दक्षिण की ओर आ गए हैं। ऐसा खुफिया सूत्रों से पता चला है कि करोड़ियों सत्तियांन से मंगल डैम तक फैले क्षेत्र में मुख्य रूप से यह लोग घूम रहे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि मंगला डैम के पास लेहरी नेशनल पार्क इलाके में आतंकवादी अपना अड्डा जमा रहे हैं। ऊपर से इस इलाके में पहाड़ और जंगल होने की वजह से यह कैंप या लॉन्च पैड के लिए आदर्श है। उसके अलावा बिल्कुल पास ही सीमा के पास सेना का अड्डा मंगला कंटोनमेंट स्थित है, जिससे पाक सेना की मदद पाना इस इलाके में काफी आसान हो जाता है।
खुफिया अधिकारियों के अनुसार, इस इलाके को चुनने का एक दूसरा कारण भी है। जब सर्दी के मौसम में पीर पंजल रेंज बर्फ से ढक जाता है और पर्यावरण बेहद प्रतिकूल होता है, तब आतंकवादी कई सालों से घुसपैठ का प्लान तैयार कर रहे हैं। मुज़फ्फराबाद जैसे लॉन्च पैड से आतंकवादी भारत में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं तो इस तरफ आते ही उन्हें पीर पंजल की भयानक ठंड और कठिन मौसम का सामना करना पड़ता।
इसके परिणामस्वरूप, प्रशिक्षण के बावजूद अधिकतर मामलों में वे भारतीय सेनाओं का सामना नहीं कर पाए। लेकिन मंगला, सावेरी, बारोही, रात्ती गली, बनाहाल जैसे सीमावर्ती क्षेत्र, जो सीधे पुंछ-राजौरी सेक्टर के लगभग समानांतर रेखा में स्थित हैं, वहां परिस्थितियां अलग हैं। बर्फ इस क्षेत्र में भी पड़ती है, लेकिन उत्तर के पीर पंजाल जैसी तीव्र हिमपात और कठोर मौसम नहीं है। वहां से सीमापार पुंछ-राजौरी मार्ग पार करने पर पीर पंजाल का सनसेट पिक मिलेगा, जिसे रोमेश ठंग के नाम से भी जाना जाता है। इस शिखर की ऊंचाई 4,745 मीटर है, लेकिन मुजफ्फराबाद की दिशा से भारत में प्रवेश करने पर पीर पंजाल का जो क्षेत्र आता है, वहां की औसत ऊंचाई ही छह हज़ार मीटर से ऊपर है।
इसलिए इस दिशा से प्रवेश करने पर प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करना काफी आसान हो जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, सन्सेट पिक पार करते ही शोपियां, पुलवामा, पाम्पोर, अवंतीपोरा और श्रीनगर बिल्कुल नजदीक आ जाते हैं। सन्सेट प्वाइंट से इस रास्ते को अपनाने पर श्रीनगर की दूरी अधिकतम 100 किलोमीटर है, जो प्रशिक्षित आतंकवादियों के लिए कुछ भी नहीं है।
फिर भी जासूसों का कहना है कि इस समय सीमा के पार केवल घूमना ही सब कुछ है। बॉर्डर पार कर यहां आकर ऑपरेशन करना इतना आसान नहीं होगा। पहले तो निगरानी कड़ी है। इस परिस्थितियों में, भले ही आईएस कश्मीर में हमला करने का सपना देखे, उनके आतंकवादी पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पार करके भारत में प्रवेश करने में बिलकुल अनुभवहीन हैं। उन्हें लश्कर की मदद की आवश्यकता होगी, जो अब भी पनाहगाह में हैं। नेता किसी भी तरह पीओके में स्थायी रूप से नहीं रह पा रहे। इस प्रकार कथित 'आका' की अनुपस्थिति में एलओसी पार कर यहां आने पर परिणाम केवल मौत ही है। ऊपर से, पाकिस्तान की सेना अब अफगानिस्तान में व्यस्त है, इसलिए वह मदद जो पाकिस्तान की फौज देती थी, अब नहीं मिलेगी।