नई दिल्ली: सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक से आठवीं कक्षा तक दो दशकों से अधिक समय से चल रही मिड-डे मील योजना (जिसे अब ‘पीएम पोषण’ के नाम से जाना जाता है) में नाश्ते को शामिल करने और बारहवीं कक्षा तक दोपहर के भोजन की व्यवस्था की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। यह मांग अब सिर्फ शिक्षकों, अभिभावकों और समाजसेवियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि कई राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन ने भी इसे औपचारिक रूप से केंद्र के समक्ष रखा है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में यह जानने के लिए सुझाव मांगे थे कि मिड-डे मील योजना को और अधिक प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है। इसी क्रम में छत्तीसगढ़, केरल, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, सिक्किम और लक्षद्वीप ने केंद्र को लिखित प्रस्ताव भेजे हैं, जिनमें सुझाव दिया गया है कि प्राथमिक वर्गों के विद्यार्थियों को दोपहर के भोजन के साथ पौष्टिक नाश्ता भी उपलब्ध कराया जाए। इस प्रस्ताव पर अब शिक्षा मंत्रालय विचार करेगा। इसके अलावा, 11 राज्यों ने मिड-डे मील योजना को बारहवीं कक्षा तक विस्तार देने की मांग की है। लगभग सभी राज्यों ने यह भी अनुरोध किया है कि इस योजना की अवधि को दो वर्ष और बढ़ाया जाए।
नाश्ते को योजना में शामिल करने का प्रयास पहले भी किया जा चुका है। कुछ वर्ष पहले शिक्षा मंत्रालय ने सभी सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को पोषक नाश्ता उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी, लेकिन वित्त वर्ष 2021–22 की शुरुआत में वित्त मंत्रालय ने इसे खर्च अधिक होने के कारण मंजूरी नहीं दी थी। मंत्रालय का कहना था कि हर वर्ष लगभग 7000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना संभव नहीं होगा।
अब यह मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है और इस बार इसमें कई भाजपा-शासित राज्य भी शामिल हैं। अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल को लेना है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी विद्यार्थियों को नाश्ता उपलब्ध कराने का प्रावधान उल्लेखित है। ऐसे में अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेती है।