'संघ के 100 वर्ष, आज की चुनौतियाँ और संघर्ष अलग हैं'

श्रद्धेय डॉ. हेडगेवार सहित कई कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। डॉ. हेडगेवार को कई बार कारावास में डाला गया था। संघ के खिलाफ कई षड्यंत्र रचे गए और इसे नष्ट करने की कोशिश की गई।

By प्रीतम प्रतीक बसु, Posted by डॉ.अभिज्ञात

Oct 04, 2025 10:51 IST

नरेन्द्र मोदी

100 साल पहले विजया दशमी के दिन ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। हमारा सौभाग्य है कि हम संघ के शताब्दी वर्ष का उत्सव मना रहे हैं। संघ के संस्थापक, डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि। संघ के 100 वर्षों की इस गौरवशाली यात्रा के स्मरण में भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया है।

इतने वर्षों से संघ शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, जनजाति कल्याण, महिला सशक्तीकरण और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है। व्यक्तिगत विकास की बजाय राष्ट्र निर्माण का मार्ग चुना है। वह राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्तिगत विकास का स्पष्ट मार्ग और शाखाओं की सरल, जीवंत पद्धति ही संघ की शताब्दी यात्रा की नींव है। इन स्तंभों पर खड़े होकर, संघ लाखों स्वयंसेवकों का पोषण कर रहा है।

श्रद्धेय डॉ. हेडगेवार सहित कई कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। डॉ. हेडगेवार को कई बार कारावास में डाला गया था। संघ के खिलाफ कई षड्यंत्र रचे गए और इसे नष्ट करने की कोशिश की गई। ऋषि की तरह, परम श्रद्धेय गुरुजी को भी झूठे मुकदमे में फंसाया गया था।

जब देश विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया था, तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की थी। हर आपदा में संघ के स्वयंसेवक अपने सीमित संसाधनों के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे हैं।

व्यक्तिगत कष्ट सहना और दूसरों के दुःख को कम करना हर स्वयंसेवक की विशेषता है। आज भी, विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंच जाते हैं। संघ ने देश के दुर्गम क्षेत्रों में भी काम किया है। आज, सेवा भारती, विद्या भारती, एकलव्य विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम आदि विभिन्न जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण के स्तंभ के रूप में उभरे हैं।

समाज में व्याप्त बुराइयों, कुरीतियों के खिलाफ संघ लगातार काम कर रहा है। परम पूजनीय गुरुजी ने लगातार 'न हिंदू पतितो भवेत्' की चेतना का प्रचार किया है। श्रद्धेय बालासाहेब देवरस जी कहते थे, 'यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है, तो दुनिया में कोई पाप नहीं है!'

सरसंघचालक के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए श्रद्धेय रज्जू भैया जी और श्रद्धेय सुदर्शन जी ने भी इस चेतना का प्रचार किया था। वर्तमान सरसंघचालक श्रद्धेय मोहन भागवत जी ने भी समाज के लिए एक स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें सद्भाव के लिए हर हिंदू के लिए एक ही कुआं, एक ही मंदिर और एक ही श्मशान हो।

100 साल बाद, आज की चुनौतियाँ और संघर्ष अलग हैं। अन्य देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने और जनसंख्या परिवर्तन के षड्यंत्र- हमारी सरकार तेजी से इन चुनौतियों का सामना कर रही है। संघ ने भी इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप तैयार किया है। आज, घुसपैठ के कारण बदली हुई जनसंख्या के कारण हमारी सामाजिक सद्भावना एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रही है।

संघ अब अगली शताब्दी में प्रवेश कर रहा है। 2047 के विकसित भारत में संघ का हर योगदान राष्ट्र को प्रेरित और उत्साहित करेगा। हर स्वयंसेवक को शुभकामनाएं।

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