राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री
1925 साल के 27 सितंबर को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेगड़ेवार ने जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की थी, तब बहुत कम लोगों ने सोचा था कि भविष्य में यह संगठन महत्वपूर्ण कई कामों में शामिल होगा। आज जब आरएसएस अपनी शताब्दी मना रहा है, तब इस संगठन की गतिविधियों का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है।
भारत की स्वतंत्रता देश विभाजन की त्रासदी के साथ आई थी। बहुत से लोगों ने जान गंवाई, लाखों लोग विस्थापित हुए। उस माहौल में आरएसएस ने असंख्य लोगों को बचाया, पुनर्वास की व्यवस्था की और उनकी रक्षा की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में देश निर्माण के काम में आरएसएस के एक शताब्दी के प्रयासों की प्रशंसा की। स्वतंत्र भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन में इस संगठन ने कितना प्रभाव डाला, इसका भी उनके भाषण में उल्लेख था।
1984 में सिख-विरोधी दंगों के समय भी आरएसएस रक्षक की भूमिका में आया। सिख समुदाय की रक्षा करना, उन्हें शरण और राहत की व्यवस्था करने में यह संगठन आगे आया। प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह ने कहा था, 'इंदिरा गांधी की हत्या के पहले और बाद में हिंदू-सिख एकता बनाए रखने में आरएसएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।'
आरएसएस हमेशा भारत को मजबूत बनाने के लिए संघर्ष करता रहा है। 1975 में आपातकाल के दौरान देशभर में जो प्रतिरोध खड़ा किया गया, संघ ने उस समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के संविधान की रक्षा करने के लिए लाखों नागरिकों को आरएसएस ने प्रेरित किया।
इन सब के बावजूद कुछ लोग आरएसएस को बहुसंख्यकों का संगठन बताकर एक गलत धारणा फैलाना चाहते हैं। हालांकि स्वतंत्रता के समय इस संगठन ने भारत के अल्पसंख्यकों और उनके उपासना स्थलों की रक्षा करने में मदद की थी।
1947 के मार्च महीने में जब मुस्लिम लीग ने स्वर्ण मंदिर पर हमला करने के लिए गुंडों को उकसाया था, आरएसएस के स्वयंसेवकों ने उस समय लाठी और तलवार लेकर उन्हें रोक दिया। हाल ही में आरएसएस के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा, 'धर्म व्यक्ति की निजी पसंद का विषय है। कोई भी शक्ति इसे किसी पर थोप नहीं सकती।' संघ की स्थापना के समय यह दर्शन ही इसकी नींव थी।
महात्मा गांधी के साथ आरएसएस के संबंध पर जो आलोचना होती है, वह उचित नहीं है। हालांकि यह सच है कि कुछ मामलों में आरएसएस के साथ महात्मा गांधी के मतभेद हुए थे। ऐसे मतभेद कांग्रेस के भीतर भी थे। लेकिन इस कारण से संघर्ष या विवादपूर्ण एक संबंध बन गया था, यह जो कहानी प्रचारित की जाती है, वह भ्रामक है।
आपसी सम्मान प्रदर्शन की जगह इस मतभेद ने कभी भी नहीं ली। 1948 के 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए आरएसएस ने 13 दिन तक हर शाखा बंद रखी थी। संघ के इतिहास में एक बार ही यह फैसला लिया गया था।