नागपुरः ब्रह्मोस मिसाइल सेंटर में काम कर चुके पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल मंगलवार देर रात नागपुर सेंट्रल जेल से बाहर आ गए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोपों से उन्हें बरी कर दिया। विदेश में नौकरी की तलाश में की गई एक गलती के कारण अग्रवाल को सात साल जेल में बिताने पड़े, जिससे उनका करियर दांव पर लग गया था। उनके वकील चैतन्य बी. बरवे ने पीटीआई को बताया कि वह मंगलवार रात नागपुर सेंट्रल जेल से बाहर आए।
बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ में कानूनी लड़ाई का केंद्रबिंदु आरोपों से जुड़ा ‘मेंस रीआ’ (दोषपूर्ण मानसिकता/अपराध की नीयत) रहा। अग्रवाल को 2018 में ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था।
2017-18 का ‘यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड’ प्राप्त कर चुके 34 वर्षीय अग्रवाल की परेशानियां तब शुरू हुईं जब उन्होंने पेशेवर नेटवर्किंग और करियर विकास का डिजिटल मंच लिंक्डइन पर सीजल कपूर नाम के एक अकाउंट से आए ‘फ्रेंड रिक्वेस्ट’ के जवाब में अपना बायोडाटा भेज दिया। उन्हें यह पता नहीं था कि यह अकाउंट पाकिस्तान से संचालित हो रहा था। उत्तर प्रदेश पुलिस की एंटी-टेरर स्क्वॉड के जांच अधिकारी पंकज अवस्थी ने बताया कि पहला संपर्क कपूर की ओर से अग्रवाल को भेजा गया था। 2017 के चार दिनों की चैट की जांच करते हुए पुलिस अधिकारी ने कहा कि 19 दिसंबर को कपूर ने यूके में नौकरी की जानकारी दी, जिसमें अग्रवाल ने रुचि दिखाई। आगे की जांच में हाई कोर्ट ने यह देखा कि चैट से प्रतीत होता है कि कपूर अग्रवाल को यूके कंपनी के मैनेजर के साथ इंटरव्यू के लिए बुला रही है और उनसे कुछ सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने को कह रही है, जो आगे चलकर मैलवेयर निकला।
अदालत के मुताबिक अग्रवाल ने लिंक्डइन पर कोई विभागीय दस्तावेज न तो भेजा और न ही अपलोड किया। ब्रह्मोस की ओर से लिंक्डइन के उपयोग पर कोई रोक नहीं है और न ही कर्मचारियों को नौकरी खोजने से रोका गया है। साक्ष्यों के मूल्यांकन के बाद अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि अग्रवाल की कोई आपराधिक नीयत थी। अग्रवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर ने भी दलीलें पेश कीं व कहा कि जिस ट्रायल कोर्ट ने अग्रवाल को उम्रकैद की सजा दी थी उसने गंभीर गलती की क्योंकि अभियोजन आरोपों को संदेह से परे साबित नहीं कर पाया। अग्रवाल के निजी लैपटॉप से मिली फाइलें उन्हीं 23 लोगों के प्रशिक्षण किट का हिस्सा थीं, जिन्हें 2013 में ब्रह्मोस में भर्ती किया गया था।
अभियोजन द्वारा लगाए गए ‘हनीट्रैप’ के आरोप पर अदालत ने कहा कि अभियोजन गलत सूचना या सूचना के आदान-प्रदान को साबित नहीं कर पाया और यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि अभियुक्त ने जानबूझकर कोई जानकारी भेजी। अदालत ने कहा कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य इसी निष्कर्ष पर ले जाते हैं कि अग्रवाल द्वारा मैलवेयर डाउनलोड करने का उद्देश्य यूके में नौकरी प्राप्त करना था, न कि किसी जानकारी या डेटा का आदान-प्रदान करना।